SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 16
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ का प्रतिपादन किया; किन्तु ये चार महाव्रत महावीर से २५० वर्ष पूर्व पार्श्वनाथ के समय में माने जाते थे । यह भूल बडेही महत्व की है क्यों कि उससे जैनों के उत्तराध्ययन सूत्र के तेईसवें अध्याय की यह यात सत्य सिद्ध होजाती है कि तेईसवें तीर्थंकर पार्श्वनाथ के अनुयायी महावीर के समय में मोजूद थे। (६) चौद्धों ने अपने सूत्रों में कई स्थानों पर जैनों को अपना प्रतिस्पर्धी माना है, किन्तु कहीं भी जैन धर्म को बौद्ध धर्म की शाखा, अथवा नव संस्थापित धर्म नहीं लिखा। (७) मख्खलीपुत्र गोशाला महावीर का शिष्य था, परन्तु बाद में वह पाखण्डी-धर्मद्रोही हो गया । इसी. गोशाला और उसके सिद्धान्तों का बौद्ध धर्म के सूत्रों में कई स्थानों पर उल्लेख पाया जाता है। (८) बौद्धों ने महावीर के शिष्य सुधर्माचार्य के गोत्र का और महावीर के निर्वाण स्थान का भी उल्लेख किया है । . प्रोफेसर जेकोबी ने जैन धर्म की प्राचीनता के जो प्रमाण दिये हैं उनमें से केवल थोडेसे प्रमाणो का ही उल्लेख ऊपर किया गया है। इनसे निस्सन्देह सिद्ध होजाता है कि जैन धर्म बौद्ध धर्म की शाखा नहीं है, किन्तु उससे प्राचीन है । अब हम यह दिखलायेगे कि हिन्दुओ के शास्त्र उपरोक्त कथन का कहां तक समर्थन करते हैं। हिन्दू शास्त्रों में जैन
SR No.010241
Book TitleJain Itihas
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages115
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy