SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 104
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ९२ उनमें कोई ऐसा दोष नहीं है जिसके कारण वे सत्य का उपदेश न दे सकेँ । संसार को त्यागने में और लौकिक सुखों को ठुकराने मे उनका एक मात्र यही उद्देश है कि वे उन उच्च सद्गुणों का पालन कर सकें कि जिनके कारण तीर्थंकरों का नाम अमर होगया है । सारांश यह है कि ये महावीर के सच्चे भक्त होने की पात्रता रखते हैं इसलिए जैन धर्म के पवित्र और असली सिद्धान्तो का उपदेश देने की सबसे अधिक योग्यता इनमें ही पाई जाती है । इन सिद्धान्तों का प्रचुर प्रचार मनुष्य जाति के व्यवहार में का ही इनके जीवन का खास उद्देश होने से ये ही महावीर के सच्चे अनुयायी कहलाने के पात्र हैं । करने उन लोगों को हम महावीर के सच्चे शिष्य नहीं कह सकते जो अपने आप को धर्मात्मा कहते हैं, केवल अपनी हो चिन्ता मे लगे रहते हैं, संसार को त्याग कर भी संसार में फॅसे रहते हैं और अपना ही मतलब गांठने में व लोगों को धोखा देने में जरा भी नहीं डरते ! सच्चे शिष्य बनने के लिए कौन सी बातों की आवश्यकता है । सच्चे शिष्य बनने के लिए यह आवश्यक नहीं है कि हम तीर्थंकरों की बाह्य उपचारों से पूजा करे जैसा कि मूर्ति पूजक किया करते हैं । आवश्यकता केवल इस बात की है
SR No.010241
Book TitleJain Itihas
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages115
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy