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________________ में इन सिद्धान्तों के ऊपर शांत होकर विचार किया और उन्हे दृढ विश्वास हो गया कि ये सिद्धान्त सच्चे, पवित्र और सर्वाङ्ग पूर्ण हैं और तत्कालीन नामधारी धर्मात्मा लोगों के प्रचलित सिद्धान्त मनमाने और संकीर्ण है। इस प्रकार विश्वास हो जाने पर परमात्मा से डरने वाले और बुद्धिमान मनुष्यो ने तुरन्त ही असली और प्राचीन धर्म का अंगीकार कर लिया परन्तु जो लोग पक्षपाती और कट्टर थे उन्हों ने पूजा के पाखंड को और अन्य क्रियाओं को, जिनकी आज्ञा जैन धर्म के असली प्रचारकों ने कभी न दी थी न छोडा । उपरोक्त बातो के कारण स्थानकवासी संप्रदाय प्राचीन धर्म की शाखा है यह कदापि कहा नहीं जा सकता | इसकी जगह मूर्ति पूजक संप्रदाय पर ही मूल धर्म से पृथक् हो जाने का व महावीर के आदेशित सिद्धान्तो के विरुद्ध भिन्न संप्रदाय उत्पन्न करने का आरोप लगाना चाहिये। किसी मत को किसी धर्म की शाखा उसी समय कह सकते है कि जब वह मत उस धर्म के असली प्रचारको के सिद्धान्तो का खंडन करता हो। हमने ऊपर के पृष्ठों में यह निर्विवाद सिद्ध कर दिया है कि श्वेताम्बरों का मूर्ति पूजक संप्रदाय ही एसा है जो सिद्धान्तों में और व्यवहार में भी महावीर और अन्य तीर्थंकरों के सिद्धान्तो के सर्वथा विरद्ध है । इसलिये यह कहना युक्तियुक्त है कि यह संप्रदाय प्राचीन
SR No.010241
Book TitleJain Itihas
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages115
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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