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________________ ४८ कर अंगीकार कर लेती है। वास्ते एकाएक साहस काम कीये विगर लंबी नजर से विचार, उचित नीति आदरके वर्तना चाहिये कि जिसे कवीभी खेद-पश्चाताप करने का प्रसंगही न आवै. सहसा काम करने वालेको बहोत करके वैसा प्रसंग आये बिना रहताही नही, . ११ उत्तम कुलाचारकों कबीभी लोपना नहि. उत्तम कुलाचार, शिष्ट-मान्य होनेसे धर्मके श्रेष्ट नियमाकी तरह __ आदरने योग्य है. मद्यमांसादि अभक्ष्य पर्जित करना, परनिंधा छोड देनी, हंसवृत्तिसें गुणमात्र ग्रहण करना, विषयलंपटता-असंतोष तज___ कर संतोष वृत्ति धारण करनी, स्वार्थवृत्ति तज निःस्वार्थपनसे परो पकार करना, यावत् मद मत्सरादिका त्याग कर मृदुतादि विवेक धारणरु५ उत्तम कुलाचार कौन कुशलकुलीनको मान्य न होय ? । उत्तम मर्यादा सेवन करने वालेको कुपित हुवा कलिकालभी क्या कर सकता है ? १२ किसीको मर्मवचन नहि कहना. मर्भवचन सहन न होनेसे कितनेक मुग्ध लोग मान लिये मरण शरण होते हैं, इस लीये पैसा परको परितापकारी वचन कभी नहि उच्चरना. मृदुभाषण हामने पालेकोभी पसंद पडता है. चाहे वैसा स्वार्थ भोगस हामनेवालेका हित होय वैसाही विचारकर बोलना. सज्जनकी वैसी उत्तम नीति कवीभी नहि उल्लंघनी. लोगोंमेंभी कहनावत है कि जहांतक शकरसें पित्त समन हो जाय वहां तक चिरायता काकु पिलाना चाहिये ?
SR No.010240
Book TitleJain Hitbodh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKarpurvijay
PublisherJain Shreyaskar Mandal Mahesana
Publication Year1908
Total Pages331
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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