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________________ दर्शन, अनंत चारित्र और अनंतवीर्य सहित हो शिव-अचल-अ. क्षय-अन्यावाध और अपुनरावृत्ति सिद्ध गति नामक श्रेष्ठ गतिस्थानकका प्राप्त कर सकता है। ___ सब प्रकार के बाह्य और अंतर क्लेशके क्षयसें सर्व प्रभु श्री महावीर स्वामीकी समस्त संतती-प्रजा साधु, साधी, श्रावक और श्राविकाओंको हमेशां भावदीपाली हो यही अंतरात्माका आशिर्वाद समस्त विवेकी सजनाकों सफल हो ! जैसी भावदीवाली हमेशा प्रकटी हुइ देखनेके वास्ते विवेकी सजन सन्मुख हो ! समस्त वाधक भाव तजकर साधक भाव अंगिकार करनेको कटिपद्ध हो ! और निर्मल रायी ( सम्यम् ज्ञान, सम्यग् दर्शन और सम्यम् चारित्र )का यथाविधि आराधन करनेके वास्ते उद्युक्त हो ! जिस सर्व श्रेय-मांगलिक माला स्वतः स्वयं आ मिलै ! ! ! __ अस्तु ! अंत मांगलिक स्तुति. शांत सुधारस झील रही, फरुणारस भीनी आंखडियारे; निंद स्वम संकोच स्वभावे, लाजी पंकज पाखडियारे. शांत. सर्व मंगल मांगल्यं, सर्व कल्याण कारण • प्रधान सर्व धर्माणा, जैन जयति शासनं. इत्यलम्
SR No.010240
Book TitleJain Hitbodh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKarpurvijay
PublisherJain Shreyaskar Mandal Mahesana
Publication Year1908
Total Pages331
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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