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________________ हो ? और इस मुजव ऐक्यता रुष अखंड जंजीरसे संबंध भने हुवे और वीतरागमणीत शुद्धाचार विचारको सेवनसें प्रसन्नाशय धारनकर वै महात्माओं साक्षात् जंगम करपक्षकी श्रेणीकी तरह अपनी अति शीतल छायासें संसारतापसे खिन्न होकर भावशातिके लिये आश्रय लेनेकों आये हुवे सुश्रावक-श्राविका वर्गको सदुपदेशरुष अमृतफल पखाकर कितना भारी आनंद देनेको शक्तिपत हो सके, इस भुजब प्रसन्न दिलसें उ नीतिके सेवनद्वारा कैसा अनूपम लाभ संपादन हो. ___अहा ! जैसी सोनेरी तक कब आयगी कि जब उत्तम शौहरी ओंकी नरहे सदा जयवंता वर्तता हुवा जनशासन०५ बाजार से अपन भी परीक्षापूर्वक गुणालीकोही ग्रहण करेंगे, और दोष पदोंको फेंक देवेगे ! असा सुनहरी सूर्य कप उगेगो कि जब अपन विवेकमकाशद्वारा प्रकट रीतिसें गुणदोपको समझकर सद्गुणोंकों ही आदर करते शिखेंगे ! जैसी सुनहरी घडी कर देखेंगे या पागे कि जब अपन पराये छिद्र शोधन करनेकी बुरी आदत भूलकर फक्त गुणग्रहण करनेकी उत्तम रीति आदरेंगे-श्रीकृष्ण महाराजकी तरह कोडो अबशुन से गुण मात्र ग्रहण करेंगे ! जैसी उतम मीनीट कर मिलेगी कि जब पूर्वोक्त सदा शीतल संत सुरतरु की पवित्र छायाका आश्रय लेकर वो संत सुरततकी सुवासनाके पलसे परदोष दुर्गध ग्रहण करनेकी अपनी अनादिकी बुरी आदत सर्वथा दूर करेंगे ! और निरंतर सद्गुणवासना ग्रहण करनेकी स:
SR No.010240
Book TitleJain Hitbodh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKarpurvijay
PublisherJain Shreyaskar Mandal Mahesana
Publication Year1908
Total Pages331
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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