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________________ २३३ - ११ आजकल बहुत करके श्रापक लोगांकी सांसारिक स्थिति १७ ज्यादे बारीक होनेसे उन्होंको समयोचित मदद देनेका भी उदार दिल-टूले श्रीमान् श्रावकोंका अवश्य कर्तव्य है. इस तरह समयानुसार मदद करनेसें पूर्वपुन्य के योगसें प्राप्त भइ हुइ लक्ष्मीके सार्थक्य साथ परलोकके वास्ते महान् मुछतका संचय होता है. जिसे अंतमें देव मनुष्य संबंधी उत्तम भोग सु कर वै अक्षयसुखके स्वामी होते हैं. अपने श्रीमान-धनाय श्रावक विवेकद्वारा सोच विचारकर ऐसे पारीक परुतमें सुन्ने चांदीपर लग रही मृी फमती करके श्री सर्वज्ञ प्रभुने बतलाये हुवे उत्तम क्षेत्रमें शुभ परिग्रामपूर्वक वीज बोने लगे तो दुगना तीगनां नहीं मगर सो सुनोस वकार अनंतगुने फल तक-फल पैदा किया जावै. और दन्न क्षेत्रकाल-भावको यथार्थ देखकर समयानुकूलपनेसें पतन चलानेसें श्री जिनाज्ञा आराधक भी हो सकते हैं. ऐसा समझकर सजनीका ऐसा अति शुभ और शासनको हितकर मार्ग सेवन-आराधन ___ करने में नहीं भूलना चाहिये; क्योंकि ज्ञानीपुरुष कहते है. कि: लगी जलतरंग जैसी चपल है, यौवन पतंगके रंगवत् तीन चार दिनहीं, ७ जानेवाला है, और आयुष शरदऋतुके बद्दल समान अथिर है. तो हे भन्यजनो ! अंतमें अनर्थ क्लेशादि मूलक द्रव्यकी अंदर किसलिये घभाकर मर जाते हो ? यदि तुमारा कल्यान करना चाहते हो तो परमोत्कृष्ट सर्वभाषित दानादि उत्तम धर्मका सेवन कर दश टांतसे दुर्लभ मानवभवको सार्थक करलेनमें नहीं , विन
SR No.010240
Book TitleJain Hitbodh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKarpurvijay
PublisherJain Shreyaskar Mandal Mahesana
Publication Year1908
Total Pages331
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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