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________________ जिनशासनकी शोभा-महात्म्य बढाकर शासन-प्रभावनारूप परम लाभका पातेथे. यह तमाम प्रभाव धर्मचक्रवर्ती श्री जिनेश्वर देव___ काही गिना जाता है. क्रमशः वीर परमात्मा भूमिपर प्रतिबंध-हर कत विगर विचर कर, अनंत भव्यसत्योंका उद्धार कर, आपके वाकी रहे हवे अघाती कमाका क्षय करके पंचमी गति मोक्षमै सि. धार गये और अक्षय, अनंत, अन्याबाप, अपुनर्भव, शिवसंपत्तिके स्वामी हुवे. परमसिद्ध निरंजन हो लोकाय स्थिति भजकर परम निवृत्ति सुख पाए, इसका नाम निर्वाण-कल्याणक कहाता है. जब चरम तीर्थकर श्री महावीरस्वामी निर्वाण पास हुवे तब देवेद्रादिकोंका आसन चलित होनेसें निर्वाण ज्ञात होतेही शोक सहित निर्वाण स्थल आकर अपना अपना रचित कृत्य कर कर, भाव उचोत भगवंतका विरह होनेसे द्रव्य उद्योत किया यानि दीपालिका प्रकट की. उसी दिन उसी सववसे लोगोंमै भी सब जगह मंगलकर दीवाली पर्व जाहिर हुवा. परमात्माश्रीने अंतमै सोलह प्रहरकी भव्यप्राणीओंकों अखंड देशना दीथी, जिसमे पुण्य पाप ‘फल विपाकका स्वरूप प्रतिपादन किया था. दूसरेभी विगर पूछे अनेक अध्ययन कहकर, जन्म मरणके कुल्ल बंधनोंको छोड प्रभु सवत्कृिष्ट मोक्षसुख पाए. वैसे उत्तम सुख प्राप्त होनेके वास्ते उत्कृष्ट भावसें जो भव्य प्राणी दीवाली पर्वके दिन छह अहमादिक तप कर विधवत् श्रीवीरप्रभुका ध्यान घरते है वै भी परिणाम विशुद्धिसें ।
SR No.010240
Book TitleJain Hitbodh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKarpurvijay
PublisherJain Shreyaskar Mandal Mahesana
Publication Year1908
Total Pages331
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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