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________________ स्वास्तिक कोम स्वास्तिक धार्मिक सिद्धान्तों का प्रतीक है, इसका उद्भव' भारतीय संस्कृति के साथ ही हुआ था । स्वास्तिक कुशलता और कल्याण का सूचक है, मंगलकारी है। इसी प्रकार ॐ भी धार्मिक विशेषताओं का सूचक है । अंकित करने की कला भले ही भिन्न हो। स्वास्तिक व प्रोम चिन्ह वैष्णवों ने तो माना ही है, जैनियों ने भी अपने धार्मिक कार्यों में स्वस्तिक तथा धार्मिक ग्रन्थों में प्रोम को जगह-जगह अपनाया है। सामायक के समय प्रोम का कई बार उच्चारण भी करते हैं, प्रोम के उच्चारण के साथ ही दोनों समाज के व्यक्ति ध्यानस्थ हो जाते हैं, शान्ति का आनन्द लेने लगते हैं। जैन तीर्थकर भी स्वास्तिक चिन्ह को मान्यता देते हैं । जिससे दोनों पक्षों की सांस्कृतिक व धार्मिक एकरूपता स्पष्ट होती हैं । भगवान श्रीकृष्ण ने गीता में कहा है। नोमित्येकाक्षरं ब्रह्म व्याहरन्मामनुस्मरन् । यः प्रयाति त्यजन देहं स याति परमांगतिम् ।। अर्थात 'त्रों' इस प्रकार एक अक्षर रूपी ब्रह्म का ध्यान करता हुआ जो जीव पार्थिव शरीर को छोड़ता है वह परम गति को प्राप्त होता है।
SR No.010239
Book TitleJain Hindu Ek Samajik Drushtikona
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Mehta
PublisherKamal Pocket Books Delhi
Publication Year
Total Pages179
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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