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________________ ( ७९ ) हिन्दू और बौद्ध साहित्य में राम कथा तीन रूपों में उपलब्ध हो सकी है । वाल्मीकि रामायण, अद्भुत रामायण और बौद्ध जातक, जबकि जैन साहित्य में इसके दो रूप मिलते हैं । पहला पउम चरिउ और पद्मचरित तथा दूसरा गुणभद्राचार्य का उत्तर-पुराण | जैन रामायण के रूप में पउमचरित की प्रसिद्धि हमें ज्ञात ही है, जबकि उत्तर-पुराण की राम - कथा श्वेताम्बर सम्प्रदाय में प्रचलित नहीं है, तथापि उत्तर-पुराण की कथा गुरु परम्परा के भेद से स्वतन्त्र रूप में विकसित हुयी तथा अनेक कवियों ने इसे भी आदर्श मानकर महाकवि पुष्पदन्त की भांति काव्य रचना की । वस्तुतः राम कथा भारतवर्ष की सर्वाधिक लोकप्रिय कथा है श्रीर इसकी अन्य दो तीन परम्पराम्रों की भांति जैन साहित्य में भी इसे देखा जा सकता है। आचार्यो की इस परम्परा का संकेत 'पउमचरिय' के लेखक ने भी दिया है । राम कथा एशिया के सभी देशों में देखने को मिलती है, पर श्रीराम की महानता इसलिए नहीं है कि उन्होंने कोई युद्ध जीता, पर वे तो जितेन्द्रिय होने से अपने गुणों के कारण महान् थे। जिस प्रकार उनका बाहरी श्राचरण सादगी का था, वे अन्तरंग से भी उतने ही निर्मल थे। जिस समय श्रीराम को उनके पिताजी ने वनवास दिया तो उन्होंने कहा कि पिताजी द्वारा दण्डकारण्य का मुझे राज्य दिया गया है । यह कहकर उन्होंने अपने पिता की प्राशा को शिरोधार्य किया । श्री राम जन्म से क्षणिक सम्यक दृष्टि थे । १ वैदिक धर्म की तरह जैन धर्म में भी राम और सीता पूज्य १ - विद्यानन्द मुनि : मंगल प्रवचन- पृष्ठ २२०
SR No.010239
Book TitleJain Hindu Ek Samajik Drushtikona
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Mehta
PublisherKamal Pocket Books Delhi
Publication Year
Total Pages179
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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