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________________ जाता है। वृक्ष प्रतीक :--आम, केला, तुलसी, वट, पीपल, नीम आदि : वृक्षों को जैनों में भी विभिन्न अवसरों पर पूजा के समय प्रयुक्त किया जाता है। मंगल कार्यों में तथा तीज-त्योहारों पर ग्राम के पत्तों का वन्दनवार वांधा जाता है। वेश प्रतीक :-शिखा (चोटी) यज्ञोपवीत, तिलक, माला, केसरिया वस्त्र प्रादि वेश-प्रतीक समान रूप से जैनों में भी पाये जाते हैं । शिखा तो पहले सभी जैन रखते थे, यज्ञोपवीत अब भी दिगम्बर जैनों में कुछ लोग पहिनते हैं। पूजन के बाद तिलक लगाया जाता है । १०८ मणियों से युक्त माला द्वारा जाप किया जाता है। पूजन के समय केसरिया रंग से रंगे हुए वस्त्र पहने जाते हैं। संकेत प्रतीक :---जैन समाज में भी मुद्राओं का महत्व है। मूर्ति के समक्ष, वन्दना के समय, सामायक के समय, शस्त्र स्वध्याय के समय, पारती के समय, गुरु के समक्ष एवं प्रार्थना आदि के समय भिन्न-भिन्न मुद्राओं का प्रयोग किया जाता है। इन्हीं मुद्राओं को संकेत प्रतीक कहा गया है। उपरोक्त सभी प्रतीक हिन्दू संस्कृति और उसकी समन्वित अर्थवत्ता को प्रमाणित करते हैं । जवकि अहिन्दू लोगों में इन प्रतीकों का कोई महत्व नहीं है। भारतीय संस्कृति का दूसरा नाम हिन्दू संस्कृति है। अक्सर यह प्रश्न उठता है कि क्या भारतीय संस्कृति और हिन्दू संस्कृति मूलतः एक ही है । ध्यान से देखा जाए तो भारतीय संस्कृति का ताना वही है, जिसे मार्य या हिन्दू नाम से उपलक्षित किया जाता है, वाने के सूत इधर-उधर से आए हैं, पर वे सब ताने
SR No.010239
Book TitleJain Hindu Ek Samajik Drushtikona
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Mehta
PublisherKamal Pocket Books Delhi
Publication Year
Total Pages179
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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