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________________ ( ६८ ) लगेंगे । व्यापक भारतीय संस्कृति के साथ विभिन्न सम्प्रदायों का वास्तव में ऐसा ही सम्बन्ध है । इसी भावना की वास्तविक अभिव्यक्ति और स्पष्ट अनुभूति ही भारतीय संस्कृति की विचारधारा का अभिप्राय है । भारतीय एक राष्ट्रीयता की पुष्टि के लिए यह परमावश्यक है कि हमारे विभिन्न सम्प्रदायों में समष्टि-दृष्टि-मूलक व्यापक भारतीय संस्कृति के आधार पर पारस्परिक सच्ची सद्भावना और सामंजस्य की प्रवृत्ति बढ़ायी जाए । इसके लिए ग्रावश्यक है कि प्रथम तो हमारे विभिन्न सम्प्रदायों में एक दूसरे के प्रति समादर और सहिष्णुता की भावना हो और दूसरे हम उन सम्प्रदायों को भगवती गंगा की तरह प्रगतिशील समन्वयात्मक भारतीय संस्कृति का पूरक ही समझें । इस भावना को स्थापित करने की आवश्यकता है । विभिन्न सम्प्रदायों के उत्कृष्ट साहित्य को भारतीय संस्कृति की अविच्छिन्न धारा से सम्बद्ध मानते हुए उसे अपनी राष्ट्रीय सम्पत्ति और अपना दाय समझें और उससे लाभ उठायें | उनके अपने-अपने महापुरुषों को सबका पूज्य और मान्य समझें | अपने विचारों को साम्प्रदायिक परिभाषिकता से निकाल कर उनके वास्तविक अभिप्राय और लक्ष्य को समझने का यत्न करें । दूसरे शब्दों में प्राचीन ग्रंथों के वचनों के शब्दानुवाद के स्थान में भावानुवाद की यकता है | जैन मत तथा ब्राह्मण धर्म - इस्लाम या ईसाइ धर्म के समान. जैन मत को वैदिक धर्म से पूर्णतः भिन्न मानना गलत है। उसने पुराने धर्म के दोषों को सुधारने की कोशिश की । जैन मत ब्राह्मण धर्म के यज्ञ तथा पशु बलि के विरुद्ध एक आन्दोलन था ।
SR No.010239
Book TitleJain Hindu Ek Samajik Drushtikona
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Mehta
PublisherKamal Pocket Books Delhi
Publication Year
Total Pages179
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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