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________________ ५३ ) 1 बांधा जा सकता | धर्म केवल ईश्वर ग्राराधना की शैली मात्र है | अतः स्पष्ट है कि धर्म के नाम पर गुट या संप्रदाय न बने हैं और न इनमें जाति भेद रहा है । • वस्तुतः हिंदू संकृति का साध्य त्याग है, भोग नहीं । हिंदू संस्कृति में स्वाभाविक है, भोगी की अपेक्षा त्यागी का स्थान ऊंचा है । चक्रवर्ती सम्राट भी त्यागी महात्माओं के सामने नतमस्तक होते हैं, यह महान परम्परा जैनों में भी विद्यमान हैं । 1 जिस प्रकार वेद नामक ग्रंथ के कारण उसके अनुयायियों को वैदिक, गुरु नानक जी के धर्म शिष्यों को सिक्ख, विष्णु देवता के उपासकों को वैष्णव, लिंग पूजकों को लिंगायत के नाम प्राप्त होते हैं । वैसे 'हिंदू' यह नाम किसी भी धर्म ग्रंथ से या धर्म-संस्थापक सेवा धर्म-मत से प्रमुखतः या मूलत: निर्मित नहीं हुआ है । वह तो ग्रासिंधु सिंधु प्रतृत देश का एवं उसमें निवास करने वाले राष्ट्र का ही प्रमुख रूप से निर्देश करता है और फिर इसी सन्दर्भ में उसको घम ग्रंथ से या धर्म मत से वन्धित करने वाले प्रयास दिशा भ्रम उत्पन्न करने वाले हैं। हिंदू शब्द की परिभाषा का मूल ऐतिहासिक आधार सिंधु सिंधु भारत भूमि का ही होना चाहिये । वह देश तथा • उसमें उत्पन्न धर्म एवं संस्कृति के बंधनों से अनुप्रमाणित राष्ट्र ये ही हिंदुत्व के दो प्रमुख घटक हैं । श्रतएव हिदुत्व के इतिहास से यथासम्भव सम्बंधित होने वाली परिभाषा इसी प्रकार की होगी कि "यह ग्रासिंधु सिंधु भारत भूमिका, जिसकी पितृभू एवं पुण्यभू है, वही हिंदू है ।" १ - हिन्दूत्व के पंचप्राण - विनायक दामोदर सावरकर
SR No.010239
Book TitleJain Hindu Ek Samajik Drushtikona
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Mehta
PublisherKamal Pocket Books Delhi
Publication Year
Total Pages179
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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