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________________ जैन और वैष्णव : मत्य संस्कार मृत्यु संस्कार का भी समस्त भारतीय संस्कृति में अपना एक महत्वपूर्ण स्थान है, जिस प्रकार व्यक्ति और उसकी आत्मा की शान्ति के सम्बन्ध में कई परिकल्पनायें जुड़ी हैं साथ ही इस संस्कार पद्धति के कुछ अपने विशिष्ट वैज्ञानिक कारण भी हैं जो आज भी जैन और वैष्णव में एक समान देखे जा सकते हैं। समस्त जैनियों का वो चाहे दिगम्बर हों या श्वेताम्बर, हिन्द प्रथा के अनुसार उनके शवों का अग्नि-संस्कार ही किया जाता है । शव के साथ चलने वाला जन-समूह राम नाम सत्य है व अरिहंत नाम सत्य है, का मिल कर उच्चारण करने में कोई भेदभाव नहीं समझा जाता । मखाने व पंसे शव के ऊपर से फेंके जाते, मरघट पहुंचने के पहले भूमि स्पर्श कराया जाता है। शव हिन्दू का हो या जंन का वहां कुछ पैसे रख दिये जाते हैं, बाद में शव उठाने वाले पीछे के आगे व आगे के पीछे हो जाया करते हैं, चिता पर हिन्दू पद्धति के माफिक ही दिशा) रखी जाती है, उस पर घी, जवा, तिल्ली मिश्रण कर डाला जाता है. चन्दनं भी रखा जाता है, अग्नि संस्कार के बाद ही मुख्य कुटुम्बी ही चारों तरफ घूम कर चिता में आग लगाता है। कपाल क्रिया करना, कुछ समय ठहरने के बाद सभी जन, पंच लकड़ी देने, घर वापिस आने के पहले किसी जलाशय पर जाकर स्नान करने, ये सब
SR No.010239
Book TitleJain Hindu Ek Samajik Drushtikona
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Mehta
PublisherKamal Pocket Books Delhi
Publication Year
Total Pages179
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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