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________________ ( १३८ ) पशुओं के प्रति उनका द्रवित होना, दीक्षा लेना और केवल्य प्राप्ति आदि दृश्यों को अंकित किया गया है। इसी प्रकार का एक अन्य चित्रण गुणवसही मन्दिर में भी देखा जा सकता है । विमलवसही मन्दिर के देवकुलिका : सैल : नं० २६ की छत पर कृष्ण द्वारा कालिया-दमन का दृश्य उत्कीर्ण है । सम्पूर्ण चित्रण तीन भागों में विभक्त है। ऊपरी भाग के अतिरित्त निचले भाग में कृष्ण को शेपनाग की शय्या पर लक्ष्मी के साथ विश्राम करते व्यक्त किया है । इस पावार पर डा० यू० पी० शाह की धारणा है कि ये समस्त अंकन हिन्दू कथानक का अनुसरण करते हैं । १३वीं सदी के प्रारम्भ में निर्मित आज के लूणवसही मंदिर में रंगमण्डप के बायीं ओर कृष्ण जन्म की कथा, मध्य में कृष्ण की माता देवकी खाट पर लेटी हैं । देवकी के पार्श्व में एक सहायक स्त्री आकृति वैठी है और दूसरी पंखा झल रही है । उस स्थान . से बाहर निकलने के सभी मार्ग बन्द हैं। कृष्ण का जन्म कारावास में हुया था, इसलिए समस्त द्वारों को बन्द दिखाया गया है। इसी अंकन के समीप कृष्ण और गोकूल का दृश्य है । एक फलक पर कृष्ण पालने में भूलते दिखाये गए हैं । इसी प्रकार मले में लेटे कृष्ण द्वारा सले से कूद आने का भाव प्रदर्शन किया । गया है। गर्भ नं० ११ की छत पर उत्कीर्ण एक विशाल चित्रण म नामनाथ के संसार-त्याग का दृश्य सात भागों में विभक्त है, जिसमें कृष्ण से सम्बन्धित दृश्यों में कृष्ण-जरासंघ युद्ध और रानियों के साथ कृष्ण और नेमिनाथ का जल-क्रीड़ा करते हुए अंकन प्रमुख है। इसी प्रकार किला राय पिथोरा गढ़ को ध्यानपूर्वक देखने पर हमें पान उसके जो भी अवगैप बारहवीं शती में कुतुबुद्दीन
SR No.010239
Book TitleJain Hindu Ek Samajik Drushtikona
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Mehta
PublisherKamal Pocket Books Delhi
Publication Year
Total Pages179
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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