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________________ ( १३६ ) सम्पूर्ण वेदविद्या का संग्रह एवं संशोधन करने का निश्चय कर विद्यारण्य के नेतृत्व में एक पीठ की स्थापना की। देश के समस्त विद्वान पण्डितों को उस पीठ में एकत्र कर उन्हें वेद ग्रन्थों पर नये भाष्य लिखने का आदेश दिया। दूसरा भी महत्वपूर्ण कार्य उन्होंने किया । शैव-वैष्णव, जैन, इन पन्थों का श्रापसी वैमनस्य समाप्त कर हिन्दू धर्म की विघटनकारी वृत्तियों को रोक दिया । प्राचीन काल में ये पत्थ भेद किस सीमा तक पहुंच गए थे तथा जिन पुराणों ने समस्त देवतायों में ऐक्य स्थापित किया था उन्होंने ही बाद में भेदों की धूम कैसी मचा दी थी। हिन्दू-धर्म का ऐक्य इन्हीं भेदों के कारण नष्ट हुआ था । परन्तु इन सभी दुष्प्रवृत्तियों को रोक कर सम्राट वुक्क ने घोषणा की कि जैन दर्शन एवं वैष्णव दर्शन में कोई भेद नहीं है । वैष्णव के हाथों जैनियों का यदि कुछ लाभ हानि होता है तो वह अपना ही हानि लाभ है । ऐसा वैष्णव समझें थोर जैन भी इस बात का विश्वास रखें कि उनकी रक्षा करने का व्रत वैष्णव यावक्चन्द्र दिवा करो निभाते रहेंगे । ( ऐपिग्राफि का कर्नाटिका, १३६ शिलालेख, १३६८ ई० ) । ' / १ - हिन्दू समाज : संघटन और विघटन - दा० सहस्त्रबुद्धे - पृष्ठ १३१
SR No.010239
Book TitleJain Hindu Ek Samajik Drushtikona
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Mehta
PublisherKamal Pocket Books Delhi
Publication Year
Total Pages179
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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