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________________ ( १३० ) उपरोक्त ऐतिहासिक विवेचन से स्पष्टतः यह कहा जा सकता। है कि भारतीय क्षत्रिय राजाओं ने सम्भवतः हिमा और कर्मकाण्डों के प्रति अपनी उदासीनता के कारण ही जैन धर्म में दीक्षा ली थी और वे सिर्फ इस दीक्षा के कारण ही अपने आप को हिन्दू या आर्य या वैष्णव संस्कृति से बिल्कुल भिन्न और अलग मानने लग गये हों, कम से कम यह विश्वसनीय नहीं लगता। प्रमाण के लिये इसी सन्दर्भ में अन्य क्षत्रिय राजाओं और उनके समकालीन सांस्कृतिक चेतना के बदलते मूल्यों के अन्तर्गत जैन धर्म के प्रति उनकी आस्था की बात भी कही जा सकती है। क्षत्रिय वर्ण पहले विशेष रूप से जैन धर्मानुयायी ही था। ने क्षत्रिय वीर इसी धर्म को जगत अथवा अपनी प्रात्मा का कल्याणकारी धर्म समझते थे । हजारों राजा ऐसे हो चुके हैं जो जैन थे या जैन धर्म में दीक्षित हुए थे। जैन धर्म के प्रवर्तक चौबीसों ही तीर्थकर क्षत्रिय थे।" मौर्य सम्राट चन्द्रगुप्तः-अलेकजेण्डर (सिकन्दर) के उद्दण्ड भुजदण्ड से विलोडित भारतवर्प का उद्धार मौर्य चन्द्रगुप्त ने ही किया था और आज तक इतिहास पुरातत्ववेत्ताओं ने जितने भी सर्व प्राचीन शिलालेख एकत्रित किए हैं उन सबमें प्राचीनतम मिलालेख चन्द्रगुप्त के ही मिले है । जैन ग्रन्थों में मौर्य सम्राट चंद्रगुप्त के जैन धर्मावलम्बी होने व भद्रवाह स्वामी से जिन दीक्षा लेकर उनके साथ दक्षिण को प्रस्थान करने का विवरण है। मौर्य सम्राट सम्प्रति:-चन्द्रगुप्त के पात्र अशोक के पीछे सम्प्रति गद्दी पर बैठे । य जैन कहे गए हैं और इनके बनाये हुए जैन मन्दिर अनेकानेक मौर्यतर स्थानों में भी कहे जाते है । जैन १-जैन वीरों का इतिहास और हमारा पतन, लेखक अयोध्या प्रसाद गायलीय 'दास
SR No.010239
Book TitleJain Hindu Ek Samajik Drushtikona
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Mehta
PublisherKamal Pocket Books Delhi
Publication Year
Total Pages179
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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