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________________ नहीं है, पिता पिता नहीं है, माता माता नहीं है, इष्टदेव इष्टदेव नहीं है और पति पति नहीं है।' भगवान महावीर के जीवन के विषय में तथा उनके द्वारा बतलाया गया धर्म-सूत्र, श्री अगरचन्द नाहटा लिखित 'कल्याण' के संतवाणी अंक में प्रकाशित हुया है देखिये पृ० १७६ । जैन तीर्थंकरों की वाणी व उनके उपदेश वैदिक धर्म ग्रन्थों में एक नहीं अनेक स्थानों पर पाये ही जाते हैं, इसके बाद भी जैन सन्तों के विषय में व उनके संयममय जीवन व उच्च कोटि के उपदेशों को स्वीकार कर उन्हें सन्तों की शृखला में प्रकाशित किया है वो हैंश्रीकुंदकुशादार्य, मुनि रामसिंह, मुनि देवसैन, सन्त आनन्दधन जी, मस्तयोगी, ज्ञानसागर जैन योगी चिदानन्द, श्री जिनदास, आचार्य श्री भिक्षु स्वामी जी (भीखण जी) स्वामी जी श्री तारण तरण मण्डलाचार्य । जैन मत बहुत पुराना है। अनुश्रुति के अनुसार इस मत के आदि प्रवर्तक ऋषभदेव थे, जिनका उल्लेख ऋग्वेद, यजुर्वेद, विष्णु, पुराण, श्रीमद्भागवत् आदि जैनेतर ग्रन्थों में भी मिलता है । यह महापुरुष आदिनाथ के नाम से पुकारे जाते हैं । कहते हैं इन्होंने राजपाट त्याग कर घोर तप किया था और केवल्य-प्राप्त करके अहिंसा धर्म के सिद्धान्तों का प्रवर्तन किया था । पुराणों में वह महायोगी कह कर पुकारे गए हैं और उन्हें विष्णु का अवतार माना गया है । ___ऋषभदेव से महावीर तक जैन धर्म की चौबीस महान विभूतियां हुई हैं। जिन्हें तीर्थकर कहा जाता है। १-सन्तवाणी अंक, कल्याण-पृ० ६५ २-कल्याण (सन्तवाणी अंक).पृ० (१६३-१८५) ३-राष्ट्रधर्म (तीर्थकर महावीर विशेषांक) श्री वल्लभ द्विवेदी पृ० २६
SR No.010239
Book TitleJain Hindu Ek Samajik Drushtikona
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Mehta
PublisherKamal Pocket Books Delhi
Publication Year
Total Pages179
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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