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________________ LUU और यहाँ तक कि एक नियम दूसरे के प्रभाव को शून्य कर देता है । विरोध जिसे आत्मवादी ज्ञान अथवा ज्ञाता का गुण मानते हैं वस्तुजगत का एक तथ्य है । साधारण व्यक्ति को एक भ्रमात्मक वस्तु वस्तु-जगत में विद्यमान है यह सोचने में जो कठिनाई होती है उसे होल्ट इस प्रकार समझाते हैं - उदाहरण के लिये, एक वस्तु में कुछ स्थायी अपरिवर्तनशील गुण है जो सभी स्थितियों में उसमें रहते हैं, यहा" प्रश्न उठाया जायेगा, कैसे वही छड़ी सीधी और मुड़ी हुई दोनों हो सकती है क्योंकि सामान्य व्यक्ति यही सोचता है कि छड़ी में केवल एक विशेषता होनी चाहिये जो एक सामान्य प्रत्यक्षीकरण में प्रकट हुयी । होल्ट चेतना के सिद्धांत से समझाते हैं कि भौतिक जगत में दोनों विरोधी गुण होते हैं तथा विशिष्ट परिस्-ि थतियों में ज्ञाता उनमें से केवल एक चुनता है । वस्तु और अस्तित्व के विषय में विचार करते हुये होल्ट इस प्रश्न का उत्तर देते हैं कि कैसे दो विरोधी वस्तुयें वास्तविक हो सकती हैं यदि वे वस्तुगत हैं १ होल्ट कहते हैं कि दोनों वस्तुयें वास्तविक नहीं है यद्यपि दोनों वस्तुगत हैं । वास्तविक और वस्तुगत होना एक नहीं है । उदाहरणार्थं दर्पण में दिखायी देने वाला प्रतिबिम्ब वस्तुगत है किन्तु वास्तविक नहीं । इसी प्रकार मिथ्या होने का अभिप्राय आत्मगत होना नहीं है । सभी वस्तुयें जो ज्ञान की विषय हैं अस्तित्वयुक्त हैं । मात्र अस्तित्वयुक्त वस्तु के विषय में वास्तविकता का कोई प्रश्न नहीं उठता । जब उनके विषय में कोई कथन स्वीकार करते हैं तब सत्यता और असत्यता का प्रश्न उठता है । विभिन्न प्रकार के भ्रमों का विस्तार पूर्वक विश्लेषण करते हुये होल्ट दिखअनुभवों की व्याख्या अतः यह सोचना । लाते हैं कि भ्रम आत्मगत नहीं है । सभी प्रकार के भ्रमात्मक भौतिक और शारीरिक परिस्थितियों द्वारा की जा सकती है गलत है कि भ्रम ज्ञाता मस्तिष्क द्वारा उत्पन्न किये जाते हैं । दूसरे विचार का निषेध करता है न कम न अधिक महत्वपूर्ण है एक विचार जो । होल्ट यहाँ तक
SR No.010238
Book TitleJain Gyan Mimansa aur Samakalin Vichar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAlpana Agrawal
PublisherIlahabad University
Publication Year1987
Total Pages183
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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