SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 135
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 13 संभाव्य स्प में स्थापित करते हैं। दुभाग्य से हम से किसी भी निष्कर्ष को प्राथमिकता नहीं दे सकते जो इस अर्थ में असंभाव्य निकषों से संभाव्य है 132 आगे तालमन का कथन है कि आगमनात्मक दर्शन का कार्य आगमन का प्रमाणीकरण करना नहीं है वरन् हमारी आगमानात्मक अंत:प्रज्ञा का क्रमबद्ध रूप में सुधार करना है। यह सरल कार्य नहीं है, क्योंकि हमारी अंत:प्रक्षा गहराई में धुपी हुई और एक दूसरे से संस कर सकती है। किसी भी स्थिति में जीगमनात्मक नियम के प्रमाणीकरण के लिये अतिम अपील आगममात्मा प्रमाण के संप्रत्यय के प्रति आतःपक्ष विदन है।" सालमन के मत में समस्या है क्या हम अपने आन्त:पक्ष अभ्यास को प्राथमिकता देने के लिये और विकल्पों के प्रति व्यवहार के लिए तर्क दे सकते है' यदि हम ऐसा कर सकते हैं तो वहीं आगमन का प्रमाणीकरण होगा। यद्यपि हम एक आगमानात्मक नियम से दूसरे आगमनात्मक नियम को प्रमाणित नहीं कर सकते फिर भी यह दिखाने का प्रयत्न कर सकते हैं कि एक आगमनात्मक नियम को दूसरे आगमानात्मा नियम से परीयता देने का क्या कारण है' किन्तु आगमनात्मक नियम के विषय में प्रो0 बारकर अपने विचार प्रकट करते हुए प्रो० सालमन से सहमत नहीं हैं। उनका कहना है "मैं सालमन से इस बात में पूर्णतया सहमत हूँ कि यह सोया जा सकता है कि आगमन, राक के किसी दूसरे प्रकार से कम सफल हो सकता है, यह माना जा सकता है और यह एक तार्षिक संभावना | Possibility | है, किन्तु यह संभाव्यता I Prodabaty मही' है। क्योंकि हम यह निश्चित रूप से जानते हैं कि यह संभाव्य नहीं है कि आगमनात्मक अभ्यास का विरोधी कोई भी अभ्यास आगे जाकर उसी तरह सफल होगा पैसा आगमनात्मक अभ्यास होगा 135 समस्या यह ही है कि हम संभाव्य निष्कर्षों को असंभाव्य निष्कर्षों की अपेक्षा क्यों वरीयता देते हैं 36 प्रो0 बारकर का काम है कि यह प्रश्न उस प्रश्न जैसा ही है कि एक वस्तु की
SR No.010238
Book TitleJain Gyan Mimansa aur Samakalin Vichar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAlpana Agrawal
PublisherIlahabad University
Publication Year1987
Total Pages183
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy