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________________ किया जा सकता | साथ ही रसेल यह भी कहते हैं कि काल सूर्य निकलेगा हम बात का, अनुभव से डन भी नहीं किया जा सकता । जैन दर्शन हो या रसेल का दर्शन दोनों के ही मत में इस संबंध को न त अनुभव के आधार पर सिद्ध किया जा सकता है और न असिद्धही। यह ही पारण है कि पाश्चात्य दर्शन में इस सामान्य संबंध की स्थापना के लिए मिल ारा प्रस्तावित अन्वय, व्याविरेक आदि आगमनिक विधिया' असफल सिन हुई योकि ये विधिमा प्रत्यक्ष पर आधारित हैं तथा प्रत्यक्ष कु. उदाहरणों का हो सकता है। गभी का नहीं। डेविड ह्यूम ने यह ही कहा था कि इन्द्रियानुभव राहा किसी अनिवार्य और सार्वभौम सिद्धांत पर नहीं पहुँच सकते । अनुभव से केवल संभावनायें प्राप्त हो सकती है किसी प्रकार की अनिवार्यता नहीं । यद्यपि इयूम का यह कहना सत्य है कि इन्द्रियानुभव के आधार पर किसी अनिवार्य सार्वभौम नियम को सिद्ध नहीं किया जा सकता किन्तु इयुम की गलती यह है कि उन्होंने मात्र इन्द्रियानुभव को ही ज्ञान माना। कान मात्र इन्द्रियानुभा तक ही सीमित नहीं है परन् उससे परे भी है। जैसा कि हयुम के बाद आगे चलकर का ने इयुम की इसी आधार पर आलोचना की । इसका तात्पर्य है कि इस सार्वभौम और अनिवार्य सिद्धांत की बोष के लिए अनुभव के परे जाकर किसी नियम या आधार की खोज करनी होगी। पैसा कि रसेल का विश्वास है कि प्रकृति की एका पता में विश्वास का आधार कोई सामान्य नियम है, जिसका कोई अपवाद नहीं है। यह शिनात रसेल के मत में आगमन का सिलात है। रसेल का कहना है कि यह मात्र आगमन का सिद्धांत ही है। जो अनुमान को प्रमाणिक बना सकता है 18 इस शिलात को अनुभव के आधार पर न तो सिद्ध किया जा सकता है न अशिद्ध ही। आगे रसेल का कहना है कि इस आगमन के सिद्धांत को आन्तः प्रा प्रमाणिकता के आधार पर स्वीकार करना चाहिये अन्यथा भविष्य के विषय में हमारा कोई भी कथन या आशा प्रमाणित नहीं हो सकती। यदि हम आगमन के सिमात को नहीं मानते
SR No.010238
Book TitleJain Gyan Mimansa aur Samakalin Vichar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAlpana Agrawal
PublisherIlahabad University
Publication Year1987
Total Pages183
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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