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________________ 97 अतः स्पष्ट है कि विश्वास चाहे भौतिक क्षेत्र से संबंधित हों अथवा शुद्ध वैचारिक क्षेत्र से विश्वासों के असत्य होने की संभावना होती है इसलिए विश्वासों को स्थापित किये बिना ज्ञान नहीं माना जा सकता 128 गाननै 1 ithheld से किती कथन पर विश्वास करना उस पर अविश्वास करने या उसको न अधिक उचित है जब तक कि उसके विजय में कोई तर्कयुक्त 'प्रमाण न हो 29 । यहाँ पर भी सत्यापन का प्रश्न उपस्थित हो जाता है । नय और प्रमाण के मूल में यही सत्यापन का प्रश्न ही है । प्रमाणज्ञान सत्यापित नयविवचाता है । संदेह न हो या उसके पद ज्ञानमाता के आधुनिकतम रूप का प्रतिनिधित्व करने वाले chfoem की भाषा में इस समस्या को इस प्रकार रखेंगे। कोई भी कथन जिस पर कोई व्यक्ति विश्वास करता है उसके लिए स्वीकृति योग्य | Acceptable होगें । नय विशिष्ट व्यक्ति के लिए स्वीकृतियोग्य : Acceptable है किन्तु ये वीकृतियोग्य | Acceptable कथन क्या ज्ञानमीगासीय दृष्टि से तार्किक सदैव के परे भी होगे तार्किक संदेह से परे । Beyond Reasonable Doulot पद का स्वीकृतियोग्य Acceptable | पर से अधिक ज्ञानमीमाशीय महत्व है 130 2 उदाहरण के लिए, यह कहना कि मंगल-गृह में जीवन है, यह कथन एक प्राक्कल्पना, एक विश्वास के रूप में स्वीकृतियोग्य | Acceptalole हो सकता है किन्तु ज्ञानमीमासीय दृष्टि से इसे ज्ञान की कोटि में तब तक नहीं रखा जा सकता जब तक कि इसे तार्किक दृष्टि से प्रमाणित न कर दिया जाये । मंगल ग्रह पर जीवन है और मंगलग्रह में जीवन नहीं है यह दोनों ही कथन स्वीकृतियोग्य eplace हैं क्योंकि दोनों के पक्ष या विपक्ष में कोई प्रमाण नहीं दिया जा सका है। जैन दृष्टि में ये अपेक्षा भेद से सत्य है ही ।
SR No.010238
Book TitleJain Gyan Mimansa aur Samakalin Vichar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAlpana Agrawal
PublisherIlahabad University
Publication Year1987
Total Pages183
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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