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________________ और असनी दूजे लग्ना भान भरि जीरा, मुनिये प्राणी. ॥४॥ नरक गती सातों नरकाना पापननी या वेरा, सुनिये प्राणी ॥५॥छेदन मेदन शुलारोपन गंत्र मंज कंटेरा,सनिय प्राणी ॥ वहरि नियंच योनि के मांडी दुग्व सहे यहुनेरा, सुनिये प्राणी ॥ ७ ॥ इनर निगोद नित्य के भीतर काल अनन्त यमेरा, सुनिय प्राणी ॥ ८॥ मनुप मलेच्छ नीच गृहन में चांडालादि चनंग, मुनिये प्राणी ॥९॥ गिरवर या विधि भवमें भटक अब ह चेत मवेरा, सुनिये प्राणी ॥ १० ॥ (दादरा-हरनमय) सुनलो घात हमारी. जा भव नारनहारी ॥ टेक ॥ जा भव माग्न करम निवारन भारत तृष्णा मारी || पारन रौद्र कुध्यान पाठ विधि ने भय २ इन्च कारी ॥१॥ हरी नरी (बदनसी) मद भरी वानरें नकन पराई नारी ॥ मृढमती अज गृढ परपनी विनय जगन उरधारी ॥२॥ इन्हें तजी जिनदेव भजी भयि मी उदर घटारी ।।रात्रि यहार करी न घरी पर उप! यन सँभारी ॥ ३ ॥ धरि सन्नोप ढको पर दापन पापा घरम पिहारी॥रागडेप मद मोह लाम इल पदपण तज भारी ॥४॥ धरि दश लक्षण नप दादरा फर वाइन
SR No.010236
Book TitleJain Gitavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMulchand Sodhiya Gadakota
PublisherMulchand Sodhiya Gadakota
Publication Year1901
Total Pages117
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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