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________________ (६२) ("टांडौ लाधे जोवन जरवा" की चाल-विवाहमें ) टांडौ लाधैं जोवन जरवा ॥ टाडौ लाधे जोवन जरवा ॥ टेक ॥ पूरव लाधे पश्चिम लाधे, लाधे दखिन उतरवा।। ऊरध लाधे नीचे लाधे, लाधे मध्यम पुरवा ॥१॥ थावर लाधे जंगम लाधे, लाघे त्रस अरु धरवा ।। विकल सकल दोऊ हम लाधे जनम मरण हम करवा ॥२॥ नर्क ति येच मनुज सुरमें हम गति चारों दुख भरवा ॥ पंच प. रावर्तन हम भटके पंच मिथ्यात्व सहरवा ॥३॥ शतकतीन तेतालिस राजू संपूरन क्षिति भरवा ॥बहु विधि विषय कषाय भजो हम सो किमि जात उचरवा ॥४॥ हम पापी पापन के भाजन सोही करत सपरवां ॥ ताते चेतन अब सुनलीजे धीरज धर्म नजरवां ॥५॥ अनुकंपा षट काय सभी पर धारो धर्म मिहरवाँ ॥ या व्रत सेती बहुतक तिरगये जिन धारे दुख हरवा ॥ ६॥ तातें भूल करहु जनि भाई यह औसर है तरवा ॥ गिरवर दास भायजी गावत नगर चंदेरी परवा ॥७॥ (६३) ("हां कि ना रे” की चाल-हरसमय) हां कि ना रे, खोटे काम करौ मत भाई। टेक।। परजिय घात करौ मति कोई हां कि ना रे ॥ परदुख तें
SR No.010236
Book TitleJain Gitavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMulchand Sodhiya Gadakota
PublisherMulchand Sodhiya Gadakota
Publication Year1901
Total Pages117
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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