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________________ काहे को दौना काहे की सींक लगा कि प्रमुजी ।। करनी की पातर कथनी को दीना ज्ञान कीसीक लगा कि प्रभुजू ॥२॥ नेम के नीरन चरण पग्वारी चित चौका वेठाऊ कि प्रभुजी ॥ सोनेके थारन व्यंजन परोसे रूपे करछुल दधा कि प्रभुजी ॥३॥भावके भान दया की दालें क्षमाके यमला बनाऊं कि प्रभुजी ॥ ममता के माड़े साहस कि फैनी प्रेमके धीव परसाऊं कि प्रभुज़, ॥ ४ ॥ रहनी की दूध साहस की खोवा शकर सुमनि मिलाऊं कि प्रभुजी ।। पांच पचीस पकर नव नारी सजनाको गीत गवाऊं कि प्रभुजी ॥५॥ जो सुग्व पार्व जेवं सजना हमारे स्वासा पवन हुलाऊं कि प्रमुजी।। नत्ता तमोली वरई हमारे सजनाको विड़ियाँ चया कि प्रभुजी ॥६॥ पांच पान पैच विड़ियां लगाई वाही में लौंग ठटाऊं कि प्रभुजी ॥ लींग लायची प्रेम मसाले सजनों को खाद चग्वाऊं कि प्रधुजी ॥७॥ मन भर कसर दिल भर चन्दन सजनाको वृष लगाऊं कि प्रभुजी । इकइस खंड महल हक राखी निर्भय पलॅग विचाऊं कि प्रभुजी ॥ ८॥शील सन्तोष ग्ववास हमारे सजनोंके पांव दयाऊ फि प्रभुजी ।। गारी गवाॐ गिर. वर सुनाऊँ सजन चित पहलाऊं कि प्रभुजी ॥९॥
SR No.010236
Book TitleJain Gitavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMulchand Sodhiya Gadakota
PublisherMulchand Sodhiya Gadakota
Publication Year1901
Total Pages117
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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