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________________ ॥१॥ दर्शन ज्ञानचारित्र की पगड़ी, चारित्रकी पगड़ी, चारित्रकी पगड़ी सुवांधेसे लगत है परम रसाल ॥२॥ सुगुरु वचन सोई कानों में कुंडल, सोई कानों में कुंडल, सोई कानों में कुंडल सु पहिनौ जामें अति झलकत लाल ॥३॥ सोलह कारण को वागी पहिनौ सुवागौ पहिनौ, सुवागौ पहिनौ सुजामें जीव दया नितपाल ॥ ॥४॥ पंच महाव्रत रंगदार फेंटा, सुरंगदार फेंटा, सुरगदार फेंटा, सुबाँध के कर्मों के काटहु जाल ॥५॥पचीस कषाय के मोजा पहिनौ, सुमोजा पहिनौ, सुमोजा पहिनौ सुशील को पायजामा सोहै विशाल ॥ ६॥ अाठौँ ही मद् की पहिनौं पनहियां, सु पहिनौ पनहियां, सुपहिनौ पनहियां सुजामें वे अति होवै कमाल ॥७॥ पात्र दान कर कंकन बांधौं सुकंकन वांधी, सुजामें धर्म बढे तिहुँ काल ॥ ८॥ सो ऐसे हो चेतन वनके हो वनरा सुबनकर हो वनरा, सुवनकर हो वनरा, सुध्यान को रथ तुम लेहु सँभाल ॥९॥ ताही रथ पर चढकर हो बनरा, चढ कर हो वनरा, चढकर हो बनरा सुज्ञान वराती सँग रखवाल ॥१०॥ ऐसे हो सजकर जात्रो प्यारे बनरा, सु जात्रो प्यारे वनरा, सु जाके कर्मोंकी अगौनी प्रजाल ॥ ११॥ जिनवर गुणके बाजे बजाओ, सुबाजे वजात्रो, सुवाजे वजारो सुपंच परमेष्ठी के गीत रसाल ॥१२॥ ऐसे हो वनरा सुशिव रमनी सँग, सु.
SR No.010236
Book TitleJain Gitavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMulchand Sodhiya Gadakota
PublisherMulchand Sodhiya Gadakota
Publication Year1901
Total Pages117
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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