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________________ २७ वैन सुधामृत परम प्रीति उर जागी हो ॥ ७॥ चार योग चारों सुकथा सुनि सकल भरम तम भागी हो ॥ ८ ॥ विनय सकल घरि करत प्रश्न सो तातें विध पट दागों हो ॥ ९ ॥ विनयवान के ज्ञान उपन्नत तातें विनय प्रवागी हो ॥ १० ॥ विषय कषाय दोष दुख दूषण सुनत चैन सय त्यागौ हो ॥ ११ ॥ पुनि सन्तोष धार पद कहिये उर समता रस जागौ हो ॥ १२ ॥ बदली दास तनुज गिरवर हम गांवें राग सुभागी हो, नौयद पै ढंका लागौ हो ॥ १३ ॥ ( २९ ) ( " रहमदिला " विवाह में ) हांहां जी काशी के वासी रहम दिला ॥ टेक ॥ मातगर्भ में हुए जब वासी, रहम दिला | सोलह सपने भये सुख भासी रहम दिला ॥ १ ॥ उन स्वपनन फल पिता कहासी, रहम दिला || सुन माता पाई सुख राशी, रहम दिला ॥ २ ॥ दशवें मास प्रगट दिखलासी, रहम दिला ॥ पैदा भये प्रभु ता दिन काशी, रहम दिला ||३|| सब घर २ आनन्द मनासी, रहम दिला ॥ मात सेव देवी करें खासी, रहम दिला || ४ || मन प्रसन्न जिनमात रहासी, रहम दिला ॥ बहुत तमाशे देव करासी, रहम दिला ॥ ॥ ५ ॥ पारशनाथ नाम दुखनाशी, रहम दिला ॥ घरौ
SR No.010236
Book TitleJain Gitavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMulchand Sodhiya Gadakota
PublisherMulchand Sodhiya Gadakota
Publication Year1901
Total Pages117
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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