SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 108
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ८८ हो ॥ शुभ मंगल दातार परम सुखकार सोहरे गाऊं हो ॥१॥ जे चौदह कुलकर उपजे तीजे कालमें, तीजे कालमें हो ॥ चौदमें नाभि नरेन्द्र, श्री नाभिनरेन्द्र नमाऊं भाल मैं हो ॥२॥ सुरग पुरी सम नगर अयोध्या, सम नगर अयोध्या शोभा कहा२ गाइये हो॥माता मरुदेवीजू की कुंख, देवीजू की दूख गरभ प्रभु भाइयौ हो ॥३॥ षटू महिना पहिले से रतन की बरषा मनोहर बरषा हो॥होरही अँगना मझार नाभि वर बार देख मन हरषा हो॥४॥सरभि सुगंधी फूल कल्पतरू फल देव बरसावें हो॥चालै हो मन्द सुगंध पवन, सुगंध पवन ढुंदभी बाजै हो ॥५॥ बोलतजय २ शब्द, वे जै जै शब्द, मनोहर शब्द गगन में हो हो।मंगल चार अनूप, सबनमुखरूप, सबन सुखरूप, हरष मय सोभे हो॥६॥ तजि सर्वारथ सिद्ध गरभ जब आये, गरभ प्रभु आये हो॥ माता देखे हैं सोलह स्वप्न, वे सोलह स्वप्न, बहुत सुख पाये हो ॥७॥ छाई कपूर सुगंध, अगर की सुगंध चंदन की सुगंधी हो ॥ मानों फैली है धर्म सुगंध, व दिव्य सुगंध, फूलन की सुगंधी हो ॥८॥ होरही जगमग जोति रतन की जोति दीपकी जोति कहीं नहिं पाइये हो॥ माता सोवे है सुखकी सेज, फूलन की सेज, मनोहर सेज उपमा क्या गाइये हो ॥९॥ भई है सोने की रात
SR No.010236
Book TitleJain Gitavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMulchand Sodhiya Gadakota
PublisherMulchand Sodhiya Gadakota
Publication Year1901
Total Pages117
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy