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________________ १६ मोक्ष मार्गसूत्र वैराग्य में विमल केवल बोध पाया, "सन्मार्ग" 'मार्गफल" को जिनने बनाया । " सम्यक्त्रमार्ग" जिसका फल मोक्ष न्यारा, है जैन शासन यही मुख दे अपारा ।।१९२।। चारित्र बोध दृग है शिवपंथ प्यारा, ले लो अभी तुम अभी इसका सहारा । तीनो नराग जत्र लो कुछ बन्ध नाना, ये वीतराग बनते, शिव पास आता ।।१९३ ॥ मेट देता, धर्मानुगग सुख दे दुग्व ज्ञानी प्रमादवश यों यदि मान लेता । अध्यात्म मे पतित हो पुनि पुण्य पाता, होता विलीन पर में निज को भुलाता ॥ १९४॥ भाई भव्य व्रत क्यों न सदा निभालें, ले ले भले ही तप, संयम गीत गा ले । श्री गनिया समितियां कल शील पाले, पाते न बोध दृा न बनते उजाले ।। १२५ ।। जानो न । निश्चय तथा व्यवहार धर्म, बाघो मभी तुम शुभाशुभ प्रष्ट कर्म । सारी क्रिया विथन कुछ भी करो रे ! जन्मो मरो, भ्रमित हो भव में फिरो रे । । १९६ ॥ सद्धर्म धार धार उसकी करते प्रतीति, श्रद्धान गाढ़ रखते रुचि और प्रीति. चाहे अभव्य फिर भी भव भोग पाना, ना चाहते धरम से विधि को खपाना । १९७॥ [ ४० ]
SR No.010235
Book TitleJain Gita
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyasagar Acharya
PublisherRatanchand Bhayji Damoha
Publication Year1978
Total Pages175
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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