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________________ अहंत प्रकाय परमेष्ठि विभूतियो के, प्राचार्यवर्य उवझाय मुनीश्वरों के । जो माद्य वर्ण, प्र, म. मा, उ, म को निकालो, ओंकार पूज्य बनता, क्रमशः मिला लो ॥१२॥ आदीश हैं अजित शंभव मोक्ष धाम, वन्दं गुणोघ अभिनन्दन है ललाम । सद्भाव से सुमति पा सुपार्श्व ध्याऊँ, चन्द्रप्रभू चरण मे चिति ना चलाऊँ ॥१३।। श्री पुष्पदन्त शशि शीतल गील पुंज, श्रेयांस पूज्य जगपूजित वाम पूज्य । प्रादर्श मे विमल, मन्त अनन्त, धर्म, मैं शान्ति को नित नम मिल जाय शर्म ॥१४।। श्री कुन्थुनाथ अरनाथ मुमल्लि स्वामी, सबोध धाम मुनिमुव्रत विश्व नामी । आराध्य देव नमि और अरिष्ट नेमी, श्री पार्ववीर प्रणम, निज धर्म प्रेमी ॥१५॥ हैं भानु से अधिक भासुर कान्तिवाले, निदोप हैं इसलिए शगिमे निराले । गंभीर नीर निधि मे जिन सिद्ध प्यारे, संसारसागर किनार मुझे उतारें ॥१६॥ पद्यानुवाद
SR No.010235
Book TitleJain Gita
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyasagar Acharya
PublisherRatanchand Bhayji Damoha
Publication Year1978
Total Pages175
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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