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________________ श्री क्षुल्लक नियम सागर जी भुलक नीयम सागर जी तो नियम पाल तन क्षीण करे हैं काय साथ इनकी नहिं दे रई पुरषारथ ये अधिक करे हैं फिर भी ये माधक बनकर के प्रातम हित के काज लगे हैं ऐसे क्षुलक जी को हम सब शीश नमाकर नमन करे हैं क्षुल्लक गम्मय सागर देखो शिव नगरी की ओर चले हैं समय-ममय की कीमत करके ममय मार की ओर बढ़े हैं समय-ममन पर समय सार लख कर्मन को मंहार करे है गेमे समय सार साधक को मन वचं काया नमन करे है श्री क्षुल्लक चारित सागर जी क्षुल्लक चारित सागर जी भी चरित धरन की लगन करे है केवल श्रीधर के चरणों में ध्यान लगाकर करम हरे है बड़े बाबा के चरण कमल मे सल्लेखन की चाह करे हैं ऐसे चारित सागर जी को चरित्र हेतु हम नमन करे हैं समुदाय नमन मंघ सहित ये विचरण करते अात्म साधना करत चले हैं तत्व ज्ञान की चरचा करकर जीवों का अज्ञान हरे है वीतरागता से परि पूरित है वीतराग युत चरण धरे है ऐसे मुनो संघ को महनिश मोक्ष हेतु हम नमन करे है नरियल को झूठा कहके ये श्रीफल को बदनाम करे है नगर-नगर से भव्य जनों को मोक्ष हेतु ये चाह कर है पर कोई भवि मिल जावे तो दीक्षा की ये बात करे हैं ऐसे मुनी संघ को हम सब हाथ जोड नमकार कर हैं chchohci नमस्कारकर्ता सिंघई गुलाबचंद, दमोह
SR No.010235
Book TitleJain Gita
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyasagar Acharya
PublisherRatanchand Bhayji Damoha
Publication Year1978
Total Pages175
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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