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________________ ( १०५ ) ॥ तृतीय सर्गः॥ ॥ अथ चारित्र वर्णन ॥ ___ आत्माको पवित्र करनेवाला, कर्ममलके दूर करनेके लिये क्षारवत्, मुक्तिरूपि मंदिरके आरूढ़ होनेके लिये निःश्रेणि समान, आभूषणोंके तुल्य आत्माको अलंकृत करनेवाला, पापककाँके निरोध करनेके वास्ते अर्गल, निर्मल जल सदृश्य जीवको शीतल करनेवाला, नेत्रोंके समान मुक्तिमार्गके पथमें आधारभूत, समस्त माणी मात्रका हितैषी श्री अर्हन् देवका प्रतिपादन किया हुआ तृतीय रत्न सम्यग् चारित्र है। मित्रवरो! यह रत्न जीवको अक्षय सुखकी प्राप्ति कर देता है । इसके आधारसे प्राणी अपना कल्याण कर लेते हैं सो भगवान्न उक्त चारित्र मुनियों वा गृहस्थों दोनों के लिये अत्युपयोगी प्रतिपादन किया है। मुनि धर्ममें चारित्रको सर्ववृत्ति माना गया है गृहस्थ धर्ममें देशतिके नामसे प्रतिपादन किया है। सो मुनियोंके मुख्य पांच महाव्रत है जिनका स्वरूप किंचित् मात्र निम्न प्रकारसे लिखा जाता है, जैसेकि
SR No.010234
Book TitleJain Gazal Gulchaman Bahar
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages376
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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