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________________ (७८) किन्तु उपयोग शुद्ध (ज्ञानरूप) अशुद्ध ( अज्ञान ) दोनोंको ही जीव मान लिया है क्योंकि मिथ्यात्व मोहनी कर्म पूर्वक जीव सिद्ध कर दिया है ४॥ और शब्द नयके मतमें जो तीन कालमें शुद्ध उपयोग पूर्वक है वही जीव है अपितु सम्यक्त्व मोहनी कर्मकी वर्गना इस नयने ग्रहण कर ली शुद्ध उपयोग अर्थे ५ ।। समभिरूढ नयके मतमें जिसकी शुद्धरूप सत्ता है और स्वगुणमें ही मग्न है क्षायक सम्यक्त्व पूर्वक जिसने आत्माको जान लिया है उसका नाम जीव है, इस नयके मतमें कर्म संयुक्त ही जीव है ६॥ एवंभूत नयके मतमें शुद्ध आत्मा केवल ज्ञान केवल दर्शन संयुक्त सर्वथा कर्मरहित अजर अमर सिद्ध बुद्ध पारगत इत्यादि नाम युक्त सिद्ध आत्माको ही जीव माना है ७ ।। इस प्रकार सप्त नय जीवको मानते हैं ॥ द्वितीय दृष्टान्तसे सप्त नयोंका माना हुआ धर्म शब्द सिद्ध करते हैं ।। नैगम नय एक अंश मात्र वस्तुके स्वरूपको देखकर सर्व वस्तुको ही स्वीकार करता है जैसेकि नैगम नय सर्व मतोंके धर्मोको ठीक मानता है क्योंकि नैगम नयका मत है कि सर्व धर्म मुक्तिके साधन वास्ते ही है अपितु संग्रह नय जो पूर्वज पुरुषोंकी रूढि चली आती हैं उसको ही मैं कहता है क्योंकि उसका मन्तव्य है कि पूर्व पुरुष हमारे
SR No.010234
Book TitleJain Gazal Gulchaman Bahar
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages376
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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