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________________ ( २२ ) क्योंकि व्यापक शब्द ही सिद्ध करता है कि प्रथम कोई वस्तु व्याप्य है जिसमें वह व्यापक हो रहा है । यदि परमात्मा की भी परळय मानी जाये तब ईश्वरपद ही खंडित हो गया तो भला सृष्टिकर्तृत्व गुण कैसे सिद्ध होगा ?. सो इस विषयको मैं यहां पर इसलिये विस्तारपूर्वक लिखना नही चाहता हूं कि मैं सिद्धान्तको ही लिख रहा हूं न तु खंडन मंडन ॥ अब नच तत्वका विवर्ण किञ्चित् मात्र लिखता हूं:जीवाजीवाय बंधोय पुएां पावा सवोतहा । संवरो निजरा मोक्खो संतेएतहिया नव ॥ उत्त० अ० २० गाथा १४ ॥ वृत्ति - जीवाश्चेतनालक्षणा: अजीवा धर्माधर्माकाशकालपुद्गलरूपाः बन्धो जीच कर्मणोः संश्लेषः पुण्यं शुभप्रकृति रूपं पापं अशुभं मिथ्यात्वादि आस्रवः कर्मबंधहेतुः हिंसा मृपाऽदत्तैमथुन परिग्रहरूपः तथा संवराः समिति गुप्त्यादिभिरास्रवद्वारनिरोधः निर्जरा तपसा पूर्वार्जितानां कर्मणां परि नं मोक्षः सकलकर्मक्षयात् आत्मस्वरूपेण आत्मनोऽव
SR No.010234
Book TitleJain Gazal Gulchaman Bahar
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages376
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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