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________________ . महामहोपाध्याय श्रीगंगाधर जी के, जैनदर्शन के विषय में, असत्य . • आक्षेपों के उत्तर। श्रीगिरिजापतये नमो नमः । मै पवित्र काशीपुरी में कितने वरसों से प्राचीन न्याय पढ़ रहा हूँ। पढ़ते पढ़ते मैंने आजतक प्राचीन न्याय में गौतमभाष्य, न्यायवार्तिक, तात्पर्यटीका, ' श्लोकवार्तिक, ब्रह्मसूत्रशांकरभाष्य, शाबरभाष्य, सांख्यदर्शन, और बौद्धका न्यायविन्दु, माध्यमिकावृत्ति प्रभृति ग्रन्थोमें श्रीगुरुदेवकी परमदया से यथाशक्ति नैपुण्य पाया है. मैं गवेषी, जिज्ञासु, आत्मा हूँ. मेरा कहीं पर मिथ्या आग्रह नहीं है. मैं जैनों के और चार्वाकों के दर्शनों को भी देखने के लिये पिपासु हूँ. थोड़े ही दिनों के पहिले श्रीमाधवाचार्य विरचित 'सर्वदर्शनसंग्रह' मै पढता था, जब उसमें जैनमत आया तब मेरी बुद्धिको भी चक्कर आ गया याने जैनीयों के वास्तव मन्तव्य को मै जान नहीं सका. तब मुझे जैनतार्किकों के तर्कों को देखने की विशेष इच्छा हुई. उसकी परिपूर्णताके लिये मै शिवपुरी में घूमता था, इतने में परमसाग्य से एक जैनश्वेताम्वर पाठशाला मुझको मिल गई. वहा के
SR No.010234
Book TitleJain Gazal Gulchaman Bahar
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages376
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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