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________________ जनधर्म मे तप का महत्व से पुकारा गया है इससे यह पता चलता है कि पूर्वकाल मे जैन मुनियों को निम्रन्थ और श्रमण ही कहा जाता था। भगवान महावीर ने साधु के चार नाम बताये है माहणे ति वा, समणे ति वा, भिक्खु त्ति वा, निग्गन्थे त्ति वा। इन नामो पर विवेचना करते हुये वृत्तिकार आचार्यशीलाक ने बताया है-किसी भी प्राणी का हनन मत करो, अर्थात् सब प्राणियो पर दयाभाव रखो जिसकी ऐसी वृत्ति हो, वह माहन है मा हण त्ति प्रवृत्तिर्यस्याऽसौ माहनः । जो शास्त्र की नीति व मर्यादा के अनुसार तप साधना करता हुआ कर्म वधनो का भेदन करता है वह भिक्ष, है यः शास्त्रनीत्या तपसा कर्म भिनत्ति स भिक्षु २ आचार्य भद्रबाहु ने भिक्ष, की एक सुन्दर व्याख्या और की है--- जो भिदेइ खुह खलु सो भिक्खू भावओ होइ जो मन की भूख-अर्थात् तृष्णा एव आसक्ति का भेदन करता है, वही भावरूप मे भिक्षु है।। अव आप देखिये निम्रन्थ का अर्थ क्या है ? ग्रन्थि का अर्थ है-गाठ और परिग्रह । जो राग-द्वेष की गाठ से मुक्त हो, अथवा धन-धान्य आदि बाह्य परिग्रह एव राग-द्वेष मोह आदि आभ्यन्तर परिग्रह से मुक्त हो, वह निर्ग्रन्थ है । निर्ग्रन्थ की परिभाषा करते हुए बताया गया है-निर्गतो ग्रंथाद निर्गन्य:-जो ग्रथि अर्थात् गाठ से रहित है वह निम्रन्थ है । आचार्य उमास्वाति ने प्रशमरति मे बताया है ग्रन्थः फर्माष्टविध, मिथ्यात्वाविरतिदुष्टयोगाश्च । तज्जय - हेतोरशठं संयतते य स निर्गन्य ।" - १ सूत्रकृताग १११६११ २ दशवैकालिक वृत्ति अध्ययन १०, (आचार्य हरिभद्र) ३ उत्तराध्ययन नियुक्ति गाथा ३७५ ४ दशवैकालिक वृत्ति अध्ययन १, (आचार्य हरिभद्र) ५ प्रशमरति प्रकरण १४२
SR No.010231
Book TitleJain Dharm me Tap Swarup aur Vishleshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMishrimalmuni, Shreechand Surana
PublisherMarudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
Publication Year1972
Total Pages656
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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