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________________ २८ सज्झाय एगत निसेवणा य सुत्तत्थ सचितणया घिई च ।' उस एकात सुख रूप मोक्ष स्थान तक पहुंचने का मार्ग है - गुरु एव वृद्ध जनो की सेवा, अज्ञानी और मूर्खजनो से दूर रहना, स्वाध्याय करना, एकात निर्दोष शुद्ध स्थान मे रहना, और बुद्धि से सूत्र अर्थ का चिन्तन करते रहना । यह है मोक्ष का मार्ग | मुख्य रूप से इसमे भी ज्ञान और चारित्र की विशेष साधना ही बताई गई है, भाषा अवश्य भिन्न है, किन्तु भावना मे कोई अन्तर नही हैं । यह सव माथ-माथ तप चारित्र और ज्ञान के ही अग है । - आचार्य हरिभद्र ने एक स्थान पर मुक्ति का एक मार्ग बताते हुए कहा है, " कषाय मुक्ति किल मुक्तिरेव - कपायो से मुक्त होना ही मुक्ति है । कपाय विजय ही मोक्ष का एक मार्ग है । यह भी बात सही है, कपायो को जीते और वीतराग बने विना मुक्ति कैसे होगी ? विना राग-द्वेप का क्षय नही होगा एक सूक्ति यह भी प्रसिद्ध है जैन धर्म मे तप मुक्तिमिच्छसि चेत्तात ! १ वियान् विषवत् त्यज ! वधु । यदि मुक्ति चाहता है, तो विपयो को विप समझकर छोड़ दे । जब तक विषय वासना मन से नही हटेगी, तब तक मुक्ति नही होगी । क्योकि विपयो के चिन्तन से मन अपवित्र होता है, विपयो के आचरण से चारित्र का पतन होता है और अपवित्र एव पतित व्यक्ति को भी यदि मुक्ति मिल जाये तो फिर ससार पवित्रता और सदाचार का नाम ही भूल जायेगा | इस प्रकार मोक्ष मार्ग की विविध दृष्टिया हमारे सामने आई हैं, विविध मार्ग बताये गये हैं, इन मार्गों की विविधता से घबराने की या चिंता करने की आवश्यकता नही है कि अव किस रास्ते से चलें ? कौन सा रास्ता ठीक है ? वास्तव मे ये सभी रास्ते ठीक हैं, सभी मार्ग आपको उमी केन्द्र उत्तराध्ययन ३२
SR No.010231
Book TitleJain Dharm me Tap Swarup aur Vishleshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMishrimalmuni, Shreechand Surana
PublisherMarudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
Publication Year1972
Total Pages656
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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