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________________ लक्ष्य साधना चलने से पहले अपनी शक्ति को तोलकर देख लेना चाहिए । धीरे-धीरे चलने की शक्ति हो तो कोई बात नही, श्रावक धर्म बताया गया है, धीरे-धीरे ही चलो, पर चलते रहो, यह नही कि एक कोस चले और वही रुक गये, बैठ गये, थक गये और ली हुई जिम्मेदारी छोड भागे । यह मार्ग तो ऐसा है, जो चल पडा उसे सतत चलते ही रहना चाहिए। हर समय उसके कानो मे यही मत्र गूंजता रहे चरैवेति चरैवेति घरन् वै मधु विदति चरन् भद्राणि पश्यति चलते रहो, चलते रहो, चलने वाला ही अमृत प्राप्त करता है, चलने वाला ही मगल और कल्याण के दर्शन करता है। इसलिए साधक को बारवार यही प्रेरणा दी गई है ओ चलने वाले, रुकने का तुम नाम कहीं भी मत लेना, पथ मे जो बाधाएँ माथे, विजय उन्हीं पर कर लेना। हा, तो यह बता रहा था मैं कि मोक्ष प्राप्ति के ये चार मार्ग भी बताये गये हैं। वैसे इनके नाम चार है, किन्तु देखा जाय तो सब एक दूसरे से जुड़े हुए हैं, ज्ञान जहां होगा, वहा दर्शन अर्थात् श्रद्धा (सम्यक्त्व) भी होगी, क्योकि श्रद्धा शून्य ज्ञान निर्वल होता है । उस ज्ञान में कोई शान्ति नही, वल नही, और तेज नही, जिस ज्ञान में श्रद्धा नही हो । भगवान ने तो यहां तक कह दिया है कि जिसे सम्यकदर्शन की प्राप्ति नही हुई हो उसे सम्यक् ज्ञान की प्राप्ति हो ही नही सकती नादसणिस्स नाणं नाणेन विणा न हुति चरणगुणा । और सम्यक् ज्ञान के बिना चारित्र भी नही, चारित्र के बिना तप नही, और यह चारो नही तो फिर कुछ भी नहीं। बारह में से चार निकल गये तो ? १ उत्तराध्ययन २८१३०
SR No.010231
Book TitleJain Dharm me Tap Swarup aur Vishleshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMishrimalmuni, Shreechand Surana
PublisherMarudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
Publication Year1972
Total Pages656
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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