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________________ परिशिष्ट ४ . ३. कायक्लेश तप के वर्णन में पृष्ठ २६५ पर कायक्लेश के १४ भेद हमने बताए हैं । कुछ आचार्यों ने भेद संख्या १३-१४ को एक ही मानकर १३ भेद ही माने हैं ! कायक्लेश के छठे भेद निषद्या के पांच भेद स्थानांग सूत्र (२१।४००) में बताए गए हैं : १. समपादपुता २. गोनिषधिका २. हस्तिशुण्डिका ४. पर्यङ्का ५. अर्धपर्यङ्का (क) जिसमें समान रूप से पैर और पुतों-कुल्हों से पृथ्वी या आसन का स्पर्श करते हुये बैठा जाय, वह समपादपुतानिषद्या है। (ख) जिस आसन में गाय की तरह बैठा जाय, वह गोनिषधिका है। (ग) जिस आसन में कूल्हों के ऊपर बैठकर एक पैर ऊपर रखा जाय, वह हस्तशुण्डिका है। .. (घ) पद्मासन से बैठना पर्यङ्कानिषद्या है। (९) जंघा पर एक पैर चढ़ाकर बैठना अखं पर्यङ्कानिषद्या हैं । इनमें से किसी एक प्रकार की निपद्या से बैठकर कायोत्सर्ग करना कायक्लेश तप का छठा भेद है। ४. आतापना के भी कई प्रकार वताये गए हैं :१. निष्पन्न - सोते हुए आतापना लेना । . . . २ अनिष्पन्न-बैठे हुए आतापना लेना। .. . . ३ ऊर्ध्वस्थित-खड़े हुए आतापना लेना। ये क्रमशः उत्कृष्ट, मध्यम एवं जघन्य मानी गई है । अर्थात् सोते हुए की आतापना उत्कृष्ट, बैठे हुए की मध्यम, खड़े हुए की जघन्य ! (क) निष्पन्न (सोते हुए) आतापना के तीन भेद हैं- . १ नीचा मुख करके सोना (उत्कृष्ट) . . . . .
SR No.010231
Book TitleJain Dharm me Tap Swarup aur Vishleshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMishrimalmuni, Shreechand Surana
PublisherMarudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
Publication Year1972
Total Pages656
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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