SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 570
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ५१० ... . जैन धर्म में तपः .. आराधना के लिए गण का त्याग कर अन्य गण में जाना अथवा एकाकी रहना। कायोत्सा २. शरीर व्युत्सर्ग-इसी का दूसरा नाम कायोत्सर्ग है । कायोत्सर्ग का ... मुख्य उद्देश्य है-- दोपों की विशुद्धि करना । धर्माराधना करते हुए कभी-कभी उसमें प्रमाद भी हो जाता है, उस प्रमाद के कारण अशुभ कमों का बन्धन भी होता है । चारित्र में कुछ दोष लग जाने से मलिनता भी आ जाती है । उस मलिनता को दूर कर चारित्र रूप शरीर को पुनः उज्ज्वल व निर्मल बनाने के लिए कायोत्सर्ग एक प्रकार का स्नान है। इससे चारिय शरीर पर लगा मल, उसके कण-कण से दूर होकर पुनः निर्मलता और कांति प्राप्त होती है। विशुद्धि का यह उद्देश्य स्पष्ट करते हुए आवश्यक सूत्र में बताया है तस्स उत्तरीकरणणं पायच्छित फरणेणं, विसोही करणेणं, विसल्ली करणेणं पावाणं फम्माणं निग्घायणट्ठाए ठामि काउत्सगं। . -उस संयम जीवन को विशेष रूप से परिप्त करने के लिए, लगे हुए . दोपों का प्रायश्चित्त करने के लिए, आत्मा को विशुद्ध करने के लिए, शल्य रहित करने के लिए पाप कर्मों का निर्धात-उन्हें नष्ट करने के लिए मैं . कायोत्सर्ग करता हूँ। कायोत्सर्ग में साधक अपने बवान-प्रमाद वश हुई भूलों के लिए.- . प्रायश्चित्त करता है, मन में पश्चात्ताप करता है और शरीर की ममता को त्याग कर उन दोषों को दूर करने के लिए कृतसंकल्प होता है। उस संकल्प से, पश्चात्ताप से किये हुए कर्मों का भार हलका हो जाता है, मामा पर से जैसे कोई योश उटजाता है, वैसी लघुरा अनुभव होने लगती है। भगवान महावीर मा मत मिला है ? उत्तर में बताया है.
SR No.010231
Book TitleJain Dharm me Tap Swarup aur Vishleshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMishrimalmuni, Shreechand Surana
PublisherMarudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
Publication Year1972
Total Pages656
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy