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________________ निर्ममत्व की साधना च्युत्सगं जैन धर्म के उपदेशों का सार यदि एक वाक्य में बताना हो तो कहा जा सकता है-निगंमत्व ! वीतरागता ! ममत्व का त्याग करके वीतराग भाव प्राप्त करना, बस यही समस्त जैन दर्शन का सार है । किसी विद्वान से पूछा जाय कि समस्त भारतीय दर्शन का सार क्या है ? तो वह इसके तिवा और क्या बतायेगा ? उपनिषदों का सार गीता है । और गोता का सार है-. अनासक्ति योग ! युद्ध के समस्त उपदेशों में जो तत्त्व मुख्य है, वह है- उपेक्षा वृत्ति ! और जैन धर्म के समस्त नागमों में जिस शब्द की प्रतिध्वनि ज रही है, वह है वीतरागता । नारि समस्त दर्शनों की मूल भावना एक ही है--शरीर, भोग, यश प्रतिष्ठा आदि समस्त वाह्य तत्वों के प्रति उदासीनता रखना, उनके प्रति उपेक्षा भाव रखना, उनसे बनावत रहना और उनके प्रति नमत्व भाव का त्याग कर देना | भगवान महावीर ने कहा है- १ ६ व्युत्सर्ग तप मनाइयन हाइ से बाइ समादयं । सेहूदिहे मुनी बस्स पत्निमाइ आधारका श६
SR No.010231
Book TitleJain Dharm me Tap Swarup aur Vishleshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMishrimalmuni, Shreechand Surana
PublisherMarudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
Publication Year1972
Total Pages656
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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