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________________ ५०४ . जैन धर्म में तप उपसंहार ध्यान के विषय में यह गहरा व विस्तृत चिंतन जैन दर्शन में किया गया है। इनमें प्रथम दो ध्यान तो त्याज्य ही है। धर्म ध्यान एवं शुक्ल ध्यान आत्मा के लिए हितकारी है, और उनके द्वारा ही आत्मा कर्म मुक्त हो .. . सकता है। ध्यान साधना में मुख्य तत्त्व है-समता ! मन को समभाव का जितना ... ही अभ्यास होगा वह उतना ही अधिक स्थिर बनेगा। आचार्य हेमचन्द्र ने इसीलिए कहा है न साम्येन विना ध्यानं न ध्याने न विना च तत् समभाव के अभ्यास के विना, समत्व की साधना किये बिना ध्यान नहीं हो सकता, मन स्थिर नहीं हो सकता और विना मन स्थिर हुए समाधि शांति प्राप्त नहीं हो सकती । अनासक्ति, वीतरागता, निर्ममत्व इनकी उपलब्धि तभी हो सकती है जब मन 'सम' हो गया हो, विषमता दूर हो ... गई हो। और जिसकी विषमता दूर हो गई वह किसी भी विक्षेप बाधा पर विजय प्राप्त कर मन को ध्यानस्य, समाधिस्थ कर सकता है। वास्तव में मन की स्थिरता, समाधि यही सच्चा तप है।
SR No.010231
Book TitleJain Dharm me Tap Swarup aur Vishleshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMishrimalmuni, Shreechand Surana
PublisherMarudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
Publication Year1972
Total Pages656
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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