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________________ ध्यान तपः ४.७७. रौद्रः ध्यान के भी धार लक्षण हैं, जिनसे व्यक्ति के रौद्रभावों की पहचान होती है। १ ओसन्नदोसे-हिंसा, झूठ आदि. किसी एक पाप कर्म में अत्यन्त आसक्त होकर सोचना। २ बहुलदोसे- अनेक प्रकार के पापकारी दुष्ट विचारों में आसक्त हुए रहना। ३ अण्णाणदोसे-हिंसा आदि अधर्म कार्यों में धर्म बुद्धि रखकर उनमें (अज्ञान वश) आसक्त हुए रहना। ४ आमरणांतदोसे-~-मृत्यु तक मन में द्वेप और क्रूरता से भरे रहना। आखिरी समय में भी अपने पापों के प्रति पश्चात्ताप न करना किन्तु उनमें वैसा ही रौद्र एवं आसक्त हुए रहना । रौद्र ध्यान वाला प्रायः दूसरों को कष्ट देने, उन्हें पीड़ा पहुंचाने तथा उनकी हिंसा करने की चिंता में घिरा रहता है। आर्तध्यान वाला अपनी आग से अपना ही घर जलाता है, किन्तु रौद्र ध्यान वाला अपना घर तो जलाता ही है, किंतु दूसरों के घरों में भी आग लगा कर प्रसन्न होता है। दूसरों को रोते देख कर या रुलाकर अपने आंसू पोंछना चाहता है। ___ आर्त एवं रौद्र- दोनों ही ध्यान छठे गुणस्थान तक रहते हैंपुलाक लब्धि वाले मुनि जव क्रोघांध होकर चक्रवर्ती की विशाल सेना को मृतप्रायः कर डालते हैं, तथा तेजोलब्धि पर श्रमण सोलह देशों को अपने तेज से भस्मीभूत कर डालने को उतावले हो जाते हैं उस समय उनका चितन भी अत्यंत रुद्र होता है अतः उस वक्त उनमें भी रोद्र ध्यान आ जाता है। इन दोनों ध्यानों में मृत्यु होने से नरक व तिर्यच गति में ही उत्पत्ति होती है। धर्मध्यान का स्वरूप आर्त एवं रौद्र ध्यान को-सिर्फ इसलिये 'ध्यान' माना गया है कि . उनमें भी चिंतन की एकाग्रता होती है, यद्यपि वह एकाग्रता अशुभमुखी . - १ कुछ आचायों ने रोद्र ध्यान पाचवें गुण स्थान तक माना है, देखें ध्यान सतक २५, भानार्णव २६॥३६ ।
SR No.010231
Book TitleJain Dharm me Tap Swarup aur Vishleshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMishrimalmuni, Shreechand Surana
PublisherMarudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
Publication Year1972
Total Pages656
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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