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________________ ४७४ जैन धर्म में तप कारणों का वर्गीकरण करते हुए आर्तध्यान के चार कारण एवं चार लक्षण बताये गये हैं । चार कारण ये हैं १ अमणुन संपओग-अमनोज्ञ संप्रयोग-अप्रिय, अनचाही वस्तु का संयोग होने पर उससे पिंड छुड़ाने की चिंता करना कि कब यह वस्तु दूर हटे । जैसे भयंकर गर्मी हो, कड़कड़ाती सर्दी हो तब उससे छुटकारा पाने के . लिए तड़पना । किसी दुष्ट या अप्रिय आदमी का साथ हो जाये तो यह चाहना कि कैसे यह मेरा पल्ला छोड़े-इन विषयों की चिन्ता जब गहरी हो जाती है वह मन को कचोटने लगती है, और मनुष्य भीतर में बहुत ही दुस, और क्षोभ एवं व्याकुलता अनुभव करने लगता है । यही गहरी व्याकुलता अमनोज्ञ संप्रयोग-जनित है, अर्थात् अनिष्ट के संयोग से यह चिंता उत्पन्न होती है तथा अमनोज्ञ-वियोग-चिन्ता अर्थात् अनिष्ट संयोगं को दूर करने की तीव्र लालसा रूप आर्त ध्यान का प्रथम कारण है। २ मणुन्न संपओग-मनोज्ञ संप्रयोग- मन चाही वस्तु मिलने पर, जो , प्रसन्नता व आनन्द आता है, वह उस वस्तु का वियोग होने पर विलीन हो जाता है, और आनन्द से अधिक दुःख व पीड़ा अनुभव होने लगती है । प्रिय का वियोग होने पर मन में जो शोक की गहरी घटा उमड़ती है वह मनुष्य को बहुत बड़ा सदमा पहुंचाती है, उससे दिल को गहरी चोट लगती है और आदमी पागल जैसा हो जाता है। अप्रिय वस्तु के संयोग से जितनी चिन्ता होती है प्रिय के वियोग में उससे भी अधिक चिन्ता व शोक की कसक उटती है। आतं ध्यान का यह दूसरा कारण है - मनोज्ञ वस्तु के वियोग को चिंता । ३ आयंक सम्पओग-आतंकसंप्रयोग-आतंक नाम है रोग का, बीमारी का । रोग हो जाने पर मनुष्य उसकी पीड़ा से व्यथित हो जाता है और उसे दूर करने के विविध उपाय सोचने लगता है। रोगी कभी-कभी पीड़ा से व्यथित होकर आत्महत्या तक भी कर लेता है। रोग मिटाने के लिए भी वह बड़े वड़ा पाप व हिंसा आदि करने की भी सोचने लग जाता है-यह रोगचिता--. आत ध्यान का तीसरा कारण है। ४ परिजसिय काम-भोग संपओग-प्राप्त काम-भोग संप्रयोग-अथात् कान, नोग आदि की जो सामग्री, जो साधन उपलब्ध हए हैं, उनको स्थिर
SR No.010231
Book TitleJain Dharm me Tap Swarup aur Vishleshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMishrimalmuni, Shreechand Surana
PublisherMarudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
Publication Year1972
Total Pages656
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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