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________________ ४४ जैन धर्म में ने सोलह कारण भावनाएं मानी हैं और उसमें भी वैवात्ग, बिना एवं वत्सलता का महत्वपूर्ण स्थान है। इसी प्रसंग में एक बात और बता देना चाहता हूं किस से सारा भी अन्य अनेक विभूतियां भी वैयावृल करने वाले को प्राप्त होती है । मावान ऋषभदेव के दो सुपुर-भरत चक्रवर्ती और बाहुबली का नाम भी आपने सुना होगा-ये दोनों ही महान पिता से महान पुत्र थे। भरत नरूपता थे, अपनुन वैभव एवं ऐश्वयं के स्वामी थे ही, किन्तु बाहुबली भी कम नहीं है। मंमार में नहीं का एक उदाहरण है कि अपार सैन्य बलधारी महापती जमवती को गी एक शस्परहित बाहुबली ने आने बाहुवल र सारास दिया । भरत जसे चक्रवर्ती के दिन शल्य और बाहुबल नी याहुबली के समक्ष मात ला गये । याहुबली को यह अपूर्व अदभुत बल मिस साधना से प्राप्त हुना था? पूर्व जन्म की सेवा के बल पर ! उनके पूर्व भव की साधना का अध्ययन करने पर पता चलेगा-पूर्व भर में भगवान पभदेव का और नाम मुनि धे। उन्होंने बीस स्थानों की आराधना कर तीर्थकर गोला आग किया था। बाहुनाशाह मुनि इन्हीं वजनाभ मुनि के लोटे भाई थे। दोना सशसेवा-बंगाल में होनीन रहीं। बाद मुनि- ए, प्रांत मुनिना सो विधाममा जग अवययों का मन उनको बालों सेवा हो और सुबालु नुनि काल-मातार आदि द्वारा की साता नाना, रोगी आदिती परिमार्ग दरमा रादि कार्य का ३३ गारगों मुनि जीवन भर नाद नाय और माता के को। म हारा इन दोनों मुनियों को गन प्रसंगा और होने मोगा mst rimitी ---- जो करंद सो TARAPATI... HR inार - गायको
SR No.010231
Book TitleJain Dharm me Tap Swarup aur Vishleshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMishrimalmuni, Shreechand Surana
PublisherMarudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
Publication Year1972
Total Pages656
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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