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________________ मनुष्य सामाजिक प्राणी है, वह समाज में रहता है। एक-दूसरे के सहयोग की अपेक्षा रखता है। स्वयं दूसरों के काम आता है और समय पर दूसरे भी उसके काम में आते हैं । सुप-दुख में एक-दूसरे के लिए प्रायता और संवेदना प्रकट करते हैं। एक यदि संकटों के दलदल में फंसता है तो दूसरा जोने का प्रयत्न करता है। एक यदि रोगग्रस्त होता है तो दूसरा जाकी सेवा करता है और सहयोग देता है। एक के दुख से पीड़ा से दू का हृदय कवि ही उठता है बहू उसके प्रति सहानुभूति दिखाता है। पह परस्पर सहयोग से भावना के उपकार की भावना है और सेवा की भावना केसे कहा गया है। मानावना आधार है। नामक की उसति और पका कार से अपना रहती जा है-परोष नानू ... देवों में परस्पर एक इशारों की वृधि दही। DALA P को को बानी में ही नेतोजी का ही And if the fine ३ वैयावृत्य तप २९
SR No.010231
Book TitleJain Dharm me Tap Swarup aur Vishleshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMishrimalmuni, Shreechand Surana
PublisherMarudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
Publication Year1972
Total Pages656
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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