SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 481
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ विनय तप . . ४२५ आत्मसंयम व शोल इसी अध्ययन में विनय के नाम से आत्मसंयम एवं शील सदाचार की भी शिक्षा दी गई है जैसे-- अप्पा वेव दयेमव्यो...........1 वरं मे अप्पा दंतो संजमेण तवेग यो जारमा का दमन करना चाहिए पोंकि आत्मा पर कम करने वाला योनों लोक में सुती होता है। इसलिए अच्छा है कि मैं स्वयं की विधक बुद्धि से अपना नियंत्रण, संयम एवं तप केद्वारा स्वयं ही करता र मनापासार लोग बध-बंधन द्वारा मुझे मारने नियंत्रण में रखेंगे। यह आत्मानुभागन-आमसंयम की शिक्षा नी विनय को नि ... स्पोजिपिनो आत्मा ही आत्मसंयम कर मरता है । गुगजनों का अनुमापन कभी माना जा सकता है, जब पहले मन पर अनुशासन हो, क्योंकि जानी कभी मन के, अपनी इच्छा व गति के प्रतिकून बाद को स्वीकार महिना होती है. हो मनको साधता जाए व जाटिन गोबरली जाती है। नियतील शक्ति पाने, गद प्रापरतों में साकार . भी ना करता है, इसलिए उने नाममा गया है। यदि मामा करने की बात कही गई है-हिरिमं पदिलो मुधिोए ति
SR No.010231
Book TitleJain Dharm me Tap Swarup aur Vishleshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMishrimalmuni, Shreechand Surana
PublisherMarudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
Publication Year1972
Total Pages656
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy