SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 460
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रायदिवस तप बालोचना के दोष भगवतीमून में लालोचना के सभी पहलुओं पर काफी गंभीरता के साथ विचार किया गया है। जहां आलोचना न करने के प रिणाम दिखाये गये हैं, वहां आलोचना कर लेने के सुखद फल का भी वर्णन किया है । आलोचना लेने वाले और देने वाले की मानसिक गंभीरता विवेकशीलता और सरलता का वर्णन है, यहां यह भी बताया है कि बहुत से व्यक्ति मन सरल न होने पर भी लोगों में अपना प्रभाव बढ़ाने के लिए, विश्वास पैदा करने के लिए और गुरुजनों को प्रसन्न रखने के लिए आलोचना करने का अभिनय किया करते हैं । इसलिए वे लालोचना करने में भी कपट र मानक से काम लेते हैं। शास्त्रकार ने उनका आलोचना का दोष बताया है | भगवती में बताया है कि यदि मन में सरलता न हो तो वालोचना करने में भी प्रकार के दोष नग ४०७ जाते है १ आपत्ति-वालोचना लेने वाला यह सोने कि जिनके पास आयोनाकर का है पहले उनकी सेवा आदि क ताकि वे होकर पानगे । का एक को जैने पहले रिश्वत देकर अपने पक्ष में सेना आदि करके देने जैसी मनोवृति है। को ही की जाती है वैसे ही मनोवृति को प्रक्षेप माना है। २ घुमा-पते छोटे दीप की अनुमान अपने को वेष्टा करता कि आम है है है, अनुमान कालिका ना। ● को आजीवन अपना नवीन । * समरे (इन-निको
SR No.010231
Book TitleJain Dharm me Tap Swarup aur Vishleshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMishrimalmuni, Shreechand Surana
PublisherMarudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
Publication Year1972
Total Pages656
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy