SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 373
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जैन धर्म में तपः जे एगं नामे से बहुं नामे' जो एक कपाय रूप शत्रु को अपने समक्ष झुका लेता है, वह बहुत से . आत्मशत्रु ओं को झुका लेता है, उन्हें जीत लेता है । इसलिए साधक कपायों : के निरोध का सतत प्रयत्न करता रहे, कपायों से आत्मा को बचाता रहेयही सच्ची कपाय प्रतिसंलीनता है। . अन्तरंग वोष कपाय के चार भेद बताये हैं-~-क्रोध, मान, माया और लोभ । ये चारों प्राणी के हृदय में उत्पन्न होते हैं । इनका निवास कहीं बाहर नहीं, भीतर हो है । साधारण भाषा में हम कहते हैं - क्रोध आ गया, लोभ आ गया ! पर वास्तव में आया कहां ? कौन से रास्ते से, किधर से आया ? यह तो भीतर ही बैठा था, यह दानव मन के भीतर छुपा था, थोड़ा सा प्रसंग मिला कि वा. हुँकारने लग गया-जैसे पानी में गंदगी नीचे दबी रहती है, पत्थर फैका कि . उठकर ऊपर आ गई । इसी प्रकार क्रोध भी मन में छिपा रहता है, कोई... भी प्रसंग पाकर जागृत हो उठता है । इसलिए शास्त्र में इन्हें आध्यात्म दोप' कहा है। अर्थात् आत्मा में पैदा । होने वाले ये चार अन्तरंग दोप है । इनमें क्रोध सबसे पहला है तीन श्रेणी : कुख, शांत, प्रशांत क्रोध-अन्तरंग की उप्मा है, गर्मी है। वैसे यह गर्मी हर एक मनुष्य में थोड़ी-बहुत माया में रहती ही है, किन्तु फिर भी कुछ लोग बहुत श्रोधी होते हैं, कुछ शांत ! तीन तरह के मनुष्य बताये गये हैं वृद्ध, दांत और प्रशांत ! १ कुछ मनुप्य अंगारों की भांति हमेसा मोघ से जलते रहते है, किमी भी ममय देगलो, कुछ भी यात पर लो बग, शोध में मांगे लाद १ आनाग ४ २ पानांग ४२ नपा दशवकालिग १४० ३ कोई म मा चल गाय लोहं गाउ परययोगा। -नाग १
SR No.010231
Book TitleJain Dharm me Tap Swarup aur Vishleshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMishrimalmuni, Shreechand Surana
PublisherMarudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
Publication Year1972
Total Pages656
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy