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________________ [ २६ ] इसमे तप के समस्त अगों का विशद विवेचन शास्त्रीय आधार पर किया गया है। फिर भी शैली काफी सरल, सरस और रुचिवर्धक है। श्री मरुधर केसरी जी महाराज ने इस महान ग्रन्थ का प्रणयन कर जिज्ञासु साधको के लिए बहुत वडा उपकार किया है, वे कोटिशः धन्यवादाहं हैं। जैमा कि मुझे मालूम हुआ है—प्रस्तुत ग्रन्थ श्री मरुधर केमरी जी महाराज के प्रवचन साहित्य के दोहन का परिणाम है, इसका मम्पादन श्री श्रीचन्द जी सुराना 'सरस' ने किया है । ग्रन्थ मे सम्पादक की प्रवुद्धता, व्यापक अध्ययन और गहरी विद्वत्ता की छाप भी परिलक्षित होती है। इसमें आगमो के साथ-साथ व्यावहारिक ज्ञान का भी पूरा-पूरा उपयोग एन प्रयोग कर ग्रन्थ को सर्वग्राही लोग भोग्य एव साथ ही विद्वद्भोग्य बनाने का सफल प्रयास किया है । लेखक महोदय के माथ-साथ मैं सम्पादक बन्धु के प्रयास की भी प्रशसा करता हूं और हार्दिक भाव से अभिनन्दता । प्रसिद्धवक्ता श्री ज्ञान मुनि जी हमारे श्रद्धास्पद प्रर्वतक, मरुधरकेसरी श्री मिश्रीमल जी महाराज बढे दूरदर्शी, गम्भीर विचारक, आदर्श संयमी, प्रखर व्याख्याता और जैन जगत के जाने-माने तेजस्वी मुनिराज हैं। मोक्षदं और सौजन्य तो इनकी जन्ममिद्ध पावन सम्पदा है। इनकी वाणी मे बोज, मोर माधुर्य का विलक्षण संगम मिलता है। इनमे "यथानाम तथा गुण" के अनुमार जहा वास्त
SR No.010231
Book TitleJain Dharm me Tap Swarup aur Vishleshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMishrimalmuni, Shreechand Surana
PublisherMarudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
Publication Year1972
Total Pages656
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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